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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जरिये १५०० से अधिक गाँवोंकी सेवा कर रही है। खादी पचास हजारसे अधिक कतैयोंको और कमसे-कम दस हजार बुनकरों, छपाई करनेवालों, रंगरेजों, घोबियों और अन्य कारीगरोंको ठोस सहायता दे रही है, और वह सहायता ऐसी है जो राष्ट्रको सम्पत्ति बढ़ानेमें योग देती है। अस्पृश्यता तो समाप्त होती हुई चीज है जो जिन्दा रहनेके लिए संघर्ष कर रही है। १९२०-२१की हिन्दू-मुस्लिम एकताने अपनी जबर्दस्त सम्भावनाएँ प्रदर्शित की। आज दोनों सम्प्रदायोंके बीच हिंसा, कपट, मिथ्याचार और फूटके ऐसे ही जो अन्य लक्षण हैं वे निःसन्देह भयानक हैं, लेकिन वे भोंडी आत्म- चेतनाके सबूत हैं। असहयोग मन्थनकी एक प्रक्रिया थी और अब भी है, और इसने गन्दगीको सतहपर ला दिया है। और यदि अहिंसात्मक असहयोग एक जीवन्त और शुद्धीकारक शक्ति है तो शीघ्र ही वह हमारी आँखोंके सामने उस शुद्ध एकताको प्रकट कर देगी जो सहज ही हमारी आँखोंके सामने पड़ जानेवाली ऊपरी गंदगीके नीचे अदृश्य रूपसे ठोस आकृति ग्रहण कर रही है। इसलिए मेरे मनमें यह बात दिनके प्रकाशकी तरह स्पष्ट है कि स्वराज्य हमें जब भी मिले, लेकिन वह हमें लन्दनसे भेजे गये दानकी तरह नहीं, बल्कि बुराईकी संगठित शक्तियोंके विरुद्ध कठोर और स्वास्थ्यदायक असहयोग द्वारा अर्जित पुरस्कारके रूपमें ही प्राप्त करना होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १०-११-१९२७

१५९. पत्र : हरजीवन कोटकको

कावेरिम्बा " बोटसे
१० नवम्बर, १९२७

यदि एक बार भी स्वप्नदोष हो तो हमें चिन्तित और लज्जित होना चाहिए। यह कहा जा सकता है कि स्वप्नदोष मानसिक विकारके कारण ही होता है। हाल ही मेरे सुननेमें आया है कि जिन्हें कब्ज रहता हो उन्हें भी स्वप्नदोष हो जाता है । यह बात सच तो है किन्तु कब्ज भी विकारके कारण ही होता है। विकारहीन स्त्री या पुरुष आवश्यकतासे अधिक एक चुटकी अन्न भी न लें तो उन्हें कब्ज होगा ही नहीं।

किन्तु चिन्ता भी दो प्रकारकी है। पहले प्रकारकी चिन्ता आवश्यक है और वह मनुष्यको ऊँचा उठाती है और दूसरी अनावश्यक तथा गिरानेवाली है। चिन्ता और शर्मके बावजूद हमारा मन प्रफुल्लित रहेगा बशर्ते कि हमने दोष जान-बूझकर न किया हो, उसमें रस न लिया हो। इस चिन्ताका दूसरा नाम है - सतर्कता । दोषमें रस लेनेसे दूसरे प्रकारकी चिन्ता उत्पन्न होती है और वह बादमें ग्लानि उत्पन्न करती है। यह चिन्ता मनुष्यको खा जाती है और तिसपर वह उस दोषके गढ़ेमें गहरे धँसता चला जाता है। ऐसे मनुष्यको स्वप्नदोषका रोग बढ़ता जाता है जबकि सावधान व्यक्तिका यह रोग कम हो जाता है । अब शायद तुम समझ गये होगे कि जिस