१५५. पत्र : वि० ल० फड़केको
सोमवार [७ नवम्बर,१९२७]
वरतेजके अन्त्यज आश्रमके बारेमें लिखा तुम्हारा लेख कल ही पढ़ पाया हूँ । लंका जाते हुए जहाजमें बैठा हुआ यह लिख रहा हूँ। उक्त लेख अब तो बहुत पुराना पड़ गया है इसलिए मैं इसी रूपमें इसे छपनेको नहीं भेज रहा हूँ। अन्त्यज आन्दोलनके बारेमें लिखने योग्य प्रसंग आनेपर देखूंगा। तुम्हारी गाड़ी कैसी चल रही है ? काका मेरे साथ ही हैं। मेरी तबीयत भी ठीक ही कही जा सकती है।
- ११-२१ कोलम्बो
- २२-२५ जफना
इसके बाद उड़ीसा और फिर मद्रास -- कांग्रेस अधिवेशनके समय ।
बापूके वन्देमातरम्
अन्त्यज आश्रम
गुजराती (जी० एन० ३८१९) की फोटो-नकलसे ।
१५६. पत्र : जी० एन० कानिटकरको
लंका जाते हुए
८ नवम्बर, १९२७
जो रिपोर्ट तुम मेरे पास छोड़ गये थे, वह मैंने पूरी पढ़ ली है। रिपोर्ट पढ़ने में रोचक लगी। मुझे आशा है कि रिपोर्टमें जिन बातोंकी उम्मीद व्यक्त की गई है, उन्हें तुम पूरी करोगे और उत्तम कोटिका और सस्तेसे सस्ता चरखा तैयार करनेमें सफल होगे ।
हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी
- अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ९६१) से ।
- सौजन्य : गजानन कानिटकर
- ↑ १. डाककी मुद्दरसे।