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भाषण : जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्लीमें

किया।[१] उनके अली नामक एक बेटा था, जिसे उन्होंने मेरी देख-रेखमें सौंप दिया था। ग्यारह वर्षीय यह बालक अद्भुत संयत और निष्ठावान मुसलमान था । रमजानके पवित्र महीनेमें वह एक दिनका भी रोजा नहीं छोड़ता था। और फिर भी उसके मनमें हिन्दू लड़कोंके लिए कोई दुर्भाव नहीं था । आज तो दोनों समुदायोंके लोगोंकी तथाकथित धार्मिक निष्ठावादिता अन्य धर्मोके प्रति यदि घृणा नहीं तो कमसे कम दुर्भावका पर्याय बन गई है। अलीके मनमें ऐसा कोई दुर्भाव नहीं था, कोई घृणा नहीं थी। मेरे लिए पिता और पुत्र, दोनों आदर्श व्यक्ति हैं, और ईश्वर करे कि आप उनके उदाहरणसे अनुप्रेरित हों।

उन दिनोंमें, जब हिन्दू और मुसलमान एक प्रतीत होते थे तथा एक-दूसरेके लिए और अपने देशके लिए अपना खून बहानेको तैयार थे, मैंने छात्रोंसे सरकारी स्कूल और कालेज छोड़नेकी अपील की थी। इतने वर्षोंके बाद भी उन लड़कोंसे उन शिक्षण संस्थाओंसे निकल आनेके लिए कहनेका मुझे कोई दुःख नहीं है, और मेरा दृढ़ मत है कि जिन लड़कोंने मेरी अपीलके जवाबमें स्कूल-कालेज छोड़े उन्होंने अपनी मातृभूमिकी सेवा की, और मुझे विश्वास है कि भारतके भावी इतिहासकार उनके त्यागका सराहनापूर्वक उल्लेख करेंगे।[२]

लेकिन दुःखकी बात है कि आज ऐसे मुसलमान हैं जो मसजिदमें जाकर नमाज पढ़ते हैं, और ऐसे हिन्दू हैं जो मन्दिरोंमें जाते हैं और पूजा करते हैं, और फिर भी ये दोनों एक-दूसरेके प्रति घृणासे भरे हुए हैं। वे सोचने लगे हैं कि मसजिद या मन्दिरमें जानेके मतलब है कि हमें एक-दूसरेसे घृणा करनी चाहिए। लेकिन अली, बहुत ही धर्मात्मा व्यक्ति होते हुए भी ऐसा कभी नहीं सोचता था। मैंने यह कहानी आपको सिर्फ इसलिए सुनाई है कि मैं चाहता हूँ कि आपमें से प्रत्येक व्यक्ति महान काछ- लिया और उनके प्यारे पुत्र अलीकी तरह सच्चा देशभक्त बने। मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह आपको उन दोनोंके जैसा नेक दिल दे।

हकीमजीने आपको उस स्मरणीय दिवस (११ अक्टूबर, १९२०) की याद दिलाई है जब हिन्दुओं और मुसलमानोंने अपने मतभेदोंको भुला दिया था और हमेशाके लिए एक हो गये थे, जब सारे भारतमें छात्रोंको आमन्त्रित किया गया था कि वे सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओंको छोड़कर निकल आयें। मैं जानता हूँ कि यह निमन्त्रण देनेमें मेरा बहुत हाथ था, लेकिन मैं साहसके साथ कहता हूँ कि सात साल बाद भी मुझे उसका कोई दुःख नहीं है और न मैं सोचता हूँ कि वैसा करके मैंने कोई बड़ी भूल की थी। मेरा विश्वास है कि जिन्होंने सर- कारी स्कूलोंमें पढ़ाई छोड़ दी थी, उन्होंने देशकी बड़ी सेवा की थी। मुझे निश्चय है कि जब भारतके उस कालका इतिहास लिखा जायेगा तो निःसन्देह इतिहासकारको

  1. १. इस जगह हकीम अजमलखाने कहा कि गांधीजीको आवाज धीमी होनेके कारण सुनाई नहीं पड़ रही है, अतः मौलाना मुहम्मद अलोसे कहा जाये कि गांधीजी जो बोलें उसे एक-एक वाक्य करके दोहराते जायें। इसपर मुहम्मद अलीने संक्षेप में गांधीजोंके अवतकके भाषणका सार बताया ।
  2. २. इसके बादके दो अनुच्छेद हिन्दुस्तान टाइम्ससे लिये गये हैं।