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पत्र: गंगाबहन झवेरीको

एक होनेके अपने प्रयत्न तुम कभी न छोड़ना । हमारी कोशिशमें ही सफलता है। शुभ प्रयत्न कभी बेकार नहीं जाते, यह भगवानकी प्रतिज्ञा है; और इसका थोड़ा- बहुत अनुभव हम सबको है । भण्डारका काम अब तुम छोड़ नहीं सकतीं। लिया हुआ काम घबराकर हरगिज न छोड़ना । घबराने या हारनेका कोई कारण ही नहीं है। दो-बार बहनोंको अनुभव हो जाये और वे कुशल बन जायें, तब तो कोई अड़चन आनी ही न चाहिए। अगर घबराकर भण्डार छोड़ोगी तो दूसरा काम लेने में हमेशा हिचकिचा- ओगी । मतभेद, राग-द्वेषादिके होते हुए भी जो काम हैं सो तो होने ही चाहिए । जितना सब करें उससे कम तो हम हरगिज न करें ।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च : ]

दो-चार दिनमें मिलनेकी आशा रखता हूँ ।

गुजराती (जी० एन० ३६७३) की फोटो-नकलसे ।

१३७. पत्र : गंगाबहन झवेरीको

मौनवार, कार्तिक सुदी ६ [ ३१ अक्टूबर, १९२७]

[१]

चि० गंगाबहन झवेरी,

बच्ची और उसकी माँके बारेमें लिखा तुम्हारा पत्र मिला। झुलसनेका उपचार तो गंगाबहन[२] ठीक-ठीक कर ही लेगी। डाक्टर परसे विश्वास उठ जाना तो अच्छा ही है; किन्तु यह विश्वास किसी [ डाक्टर | की लापरवाही के कारण नहीं उठना चाहिए । सार-सँभाल तो अपने-आपमें एक जुदा गुण है । अतः हम अपनेको उसीके हाथमें सौंपें जिसकी सार-सम्भालके बारेमें किसी तरहकी शंका न हो, और जिसपर हमारी श्रद्धा हो; इसके बाद फिर सब-कुछ ईश्वरकी इच्छापर छोड़ दें।

तुम प्रधानका पद छोड़नेके लिए अधीर मत बनो। मैं फिलहाल तो एक दिनके लिए ही आश्रम पहुँचूँगा । तब तुम विस्तारसे मुझे सब-कुछ बताना । तुम इस पदको अधिकार न मानकर जिम्मेवारी मानो। हम अपनी जिम्मेवारी तो कभी किसीपर नहीं डालते ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३१२४) की फोटो-नकलसे ।

 
  1. १. गंगाबहन झवेरी सितम्बर, १९२७ में आश्रमकी महिलाओं की प्रधान चुनी गई थीं।
  2. २. गंगाबहन वैद्य |