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पत्र : मीराबहनको

नरहरि परीखने उठाई है। उसके प्रणेता काकासाहब कालेलकर हैं। जिन नियमोंका अनुसरण करके यह कोश तैयार किया जा रहा है उनमें जितने विद्वानोंकी सहमति ली जा सकती थी उन सब विद्वानोंकी सहमति ले ली गई है। कोश उनकी सहमति- सूचक सहीके साथ प्रकाशित होगा ।

लेकिन जैसे-जैसे यह काम आगे बढ़ता जाता है वैसे-वैसे ज्यादा मुश्किलें दिखाई पड़ रही हैं। उनमें से कुछको दूर करनेमें प्रत्येक भाषा-प्रेमी मदद दे सकता है । वह मदद किस प्रकारकी हो सकती है और किस तरह दी जानी चाहिए, उसका वर्णन पाठक भाषा प्रेमियोंके प्रति भाई नरहरि परीखके इसी अंकमें प्रकाशित निवेदनमें देखेंगे। अनेक लोगोंकी मददके बिना यह काम जैसा होना चाहिए वैसा नहीं हो सकता । अतः मैं आशा करता हूँ कि सब लोग इसमें यथाशक्ति मदद करेंगे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ३०-१०-१९२७

१३४. पत्र : मीराबहनको

रविवार [ ३० अक्टूबर, १९२७]

[१]

चि० मीरा,

तुम्हारे पत्रोंसे मुझे बड़ी सान्त्वना मिलती रही है, क्योंकि उनसे मुझे रोगियोंके सम्बन्धमें सब-कुछ मालूम होता रहा है। तुम रसोई घर अच्छी तरह साफ कर रही हो, इसकी मुझे खुशी है। पिछले सोमवारको मैंने पत्र लिखा तो था । अबतक वह तुम्हें मिल गया होगा। बाकी कल ।

सप्रेम,

बापू

[ पुनश्च : ]

वापसी यात्रामें मैं एक दिनके लिए आश्रममें रुकनेकी आशा करता हूँ।

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२९६) से ।
सौजन्य : मीराबहन
 
  1. १. तारीखका निर्धारण पत्र में गांधीजीके आश्रम में प्रस्तावित विश्राम तथा पहले लिखे गये पत्रके सन्दर्भसे किया गया है। पहले पत्रके लिए देखिए " पत्र : मीराबइनको”, २४-१०-१९२७।