कार्य कितना ही छोटा हो, और नम्रता किन्तु दृढ़ताके साथ अन्धविश्वास और पूर्वग्रहकी दोहरी दीवारोंको तोड़े। मैं आशा करता हूँ कि कारवारके सुधारकोंको अछूतोंको मन्दिरोंमें दाखिल करनेके प्रयत्नमें सफलता मिलेगी ।
यंग इंडिया, २७-१०-१९२७
१३०. सन्देश : दक्षिणको
[२७ अक्टूबर, १९२७ ]
दक्षिणसे विदा होते हुए मुझे काफी दुख हो रहा है। मैं जहाँ भी गया मुझे सभी प्रकारके लोगोंसे हार्दिक स्नेह प्राप्त हुआ -- यहाँतक कि उन लोगोंसे भी, जो अपनेको दूसरी राजनीतिक विचारधाराका समझते हैं। मैं जहाँ भी गया वहाँ मुझे चरखेके सन्देशमें सच्ची आस्थाके दर्शन हुए। इसलिए मैं दक्षिण से पूरा आश्वस्त होकर जा रहा हूँ। मैं चाहता था कि मेरे पास कुछ और समय होता जिससे मैं उन स्थानोंमें भी यात्रा कर लेता जिनके निमन्त्रणको मैं स्वीकार नहीं कर सका था । अब मैं चाहता हूँ कि जनता अपनी आस्थाको कार्यरूपमें परिणत करे, अभीतक जिस हदतक किया है, उससे ज्यादा करे। तब लोगोंको खादीकी उस शक्तिका पता चलेगा, जिसका उन्हें कोई पता नहीं है।
हिन्दू, २९-१०-१९२७
१३१. भेंट : पत्र-प्रतिनिधियोंसे
बम्बई
२९ अक्टूबर, १९२७
इंडियन डेली मेल' के एक प्रतिनिधि द्वारा यह पूछे जानेपर कि शाही आयोगमें परामर्शदाताओंकी नियुक्तिको आप स्वीकार करेंगे या उसका बहिष्कार करेंगे, महात्मा गांधीने कहा :
मैंने इस प्रश्नपर कोई विचार नहीं किया है।
उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में होने के कारण में घटनाओंके सम्पर्कमें नहीं रह सका हूँ, और इसलिए शाही आयोगमें भारतीयोंके न रखे जानेके बारेमें जो अफवाहें हैं, उनके बारेमें में कुछ भी कहने को तैयार नहीं हूँ ।
- ↑ १. गांधीजीको २ नवम्बरको वाइसरायसे भेंट करनी थी, अतः वे मंगलोरसे २७ अक्टूबरको सुबह रवाना हुए।