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१२९. अस्पृश्यता निवारण

श्रीयुत एस० डी० नाडकर्णी कारवारसे १० सितम्बरके अपने पत्रमें लिखते हैं :

पिछले हफ्ते में और मेरे भाईने कुछ नवयुवकोंकी सहायतासे बहुत-सी अप्रत्याशित कठिनाइयोंके होते हुए भी खरा सार्वजनिक गणेशोत्सवका आयोजन किया था। इसके इस नामका मतलब यह है कि इसमें हमने अपने सभी कार्यक्रमोंमें जुलूस, पूजा, भजन, आरती, कीर्तन, पुराणपाठ और इसी अवसरके लिए खास तौरपर लिखे गये उस नाटकमें जो इस समारोहके दौरान दो बार खेला गया -- अन्य हिन्दुओंके अलावा अछूतोंको भी शामिल किया था। नाटकका आधार हमारे जिला स्कूल बोर्डके एक दलित वर्गीय सदस्यका सच्चा अनुभव है। एक बार वे एक दूसरे मुसलमान सदस्यके साथ पड़ोसके गाँवके मन्दिरमें पाठशालाका निरीक्षण करने गये थे। उन्हें तो भीतर नहीं जाने दिया गया, लेकिन उनका मुसलमान साथी भीतर जाकर स्कूलका निरीक्षण कर सका । क्या आप इसपर विश्वास कर सकेंगे ? हमारे ही कुछ लोगोंने ('मुझे न छुओ' वाले हिन्दुओंने ) नाटकका खेलना रोकनके लिए स्थानीय मुसलमानोंसे झूठी दरख्वास्त दिला दी थी कि यह नाटक मुस्लिम-विरोधी है, अतः इसपर प्रति- बन्ध लगा दिया जाये । हमारे समाजमें परमावश्यक सुधार करनेके आन्दोलन के विरुद्ध क्या इससे भी अधिक आत्मघाती रास्ता कोई हो सकता था ? मगर न्याय और बुद्धिकी विजय हुई और उनकी कोशिश बेकार गई ।
पूनाके चित्रे शास्त्री (महाराष्ट्र हिन्दू महासभा के सभापति) की सहायतासे हमने हिन्दू महासभाकी एक स्थानिक शाखा खोली। उन्हें खास तौरसे इसी उद्देश्यसे निमन्त्रित किया गया था। इस शाखाका प्रधान उद्देश्य है अस्पृश्यता- के विरुद्ध संघर्ष करना और हमारे सार्वजनिक मन्दिरोंमें अछूतोंको प्रवेशका अधिकार दिलाना ।

सुधारकों द्वारा आयोजित एक निर्दोष नाटकमें तथाकथित अस्पृश्योंकी उप- स्थितिका अपने ही मनसे अपनेको सनातनी हिन्दू कहनेवाले और श्रीयुत नाडकर्णीके शब्दोंमें 'मुझे न छुओ' की प्रवृत्तिवाले उन महानुभावों द्वारा किया गया विरोध और उस विरोधका तरीका उनके लिए या हिन्दू धर्मके लिए कोई श्रेयकी बात नहीं है। उससे यह भी जाहिर होता है कि धर्मके पवित्र नामपर अन्धी रूढ़िवादिता किस हदतक जा सकती है। मैं श्रीयुत नाडकर्णी और उनके मित्रोंको सफलतापूर्वक अछूतोंको अपने जुलूसमें शामिल करने और नाटकके अभिनयमें दाखिल करनेपर साधुवाद देता हूँ । अस्पृश्यताको दूर करनेका एकमात्र रास्ता यही है कि हरएक सुधारक दलित वर्गोंकी खातिर ऐसा ही कोई रचनात्मक कार्य करे, भले ही वह