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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रीतिसे ही हुआ है। पहले उसने रुपयोंकी मदद दी, उसके बाद उसने अपने नौकरोंके लिए खादीकी वर्दियाँ बनवाई। उसके बाद खादीपरसे चुंगी उठाई गई, और अन्तमें अपने स्कूलोंमें वह कताईको दाखिल करनेका विचार कर रही है। मैं आशा करता हूँ कि स्कूलोंमें कताईका प्रचार शास्त्रीय रीतिसे किया जायेगा और कातनेके पहले लड़के-लड़कियोंको खादी पहननेके लिए राजी किया जायेगा और उन्हें बतलाया जायेगा कि और कोई दूसरा शारीरिक श्रम करनेके बजाय उन्हें कताई क्यों करनी चाहिए। मैं यह सलाह भी देता हूँ कि उन्हें चरखेके बदले तकलीपर कातना चाहिए। जो लड़के कताईमें विशेष उत्साह और लियाकत दिखलायें, उन्हें स्कूलमें नहीं, घरपर कातनेके लिए चरखा मँगनी दिया जाये और जो लड़के एक सालतक लगातार उन्नति करते जायें उन्हें वह चरखा [ निःशुल्क ] दे ही दिया जाये। लड़के और लड़कियों, दोनोंको कातनेके पहले धुनना सिखलाना चाहिए और उनके कामकी परीक्षा रोज-रोज करनी चाहिए और समय-समयपर उनके आँकड़े तैयार करने चाहिए ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २७-१०-१९२७

१२८. कपासको लाभदायक खेती

एक सज्जनने मुझे लिखा है कि कपास पैदा करनेवाले किसानोंको अपनी कपासका कुछ हिस्सा जमा रखने और उसीका सूत कातकर अपने लिए खादी बुनवा लेनेपर तैयार करनेके लिए एक व्यापक आन्दोलन चलाना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि जहाँपर कपास पैदा नहीं होती वहाँके किसानोंको शाकभाजीकी तरह अपने निजी इस्तेमालके लिए थोड़ी कपास भी पैदा करनेको उत्साहित करना चाहिए । उनका दावा है कि अगर यह प्रवृत्ति चल निकले तो किसानोंको खादी सस्ती पड़ेगी। वे कहते हैं कि खादी आन्दोलन शुरू होनेके पहले दक्षिणके कुछ हिस्सोंमें किसान ऐसा किया करते थे । पत्रलेखकका खयाल है कि देशी रियासतें इस तरह कपासकी खेतीको सबसे अधिक प्रोत्साहन दे सकती है ।

पत्रलेखकके सुझावमें काफी बल है। बिजौलिया (राजपूताना), बारडोली और काठियावाड़में किसानोंको अपनी जरूरत-भरकी कपास रख छोड़नेको प्रोत्साहित करनेका काम चल रहा है। मगर काठियावाड़में जब भी रुईका दाम चढ़ा है, किसानोंके लिए जमा रुई को बेच देनेका लोभ जीतना मुश्किल पाया गया है। यह तबतक सम्भव नहीं है जबतक किसान खादीका अर्थशास्त्र नहीं समझ जाते और यह नहीं जानते कि बुनाईके पहले रुईपर जो मेहनत फुरसतमें वे करेंगे, उससे भी वही लाभ होगा जो अधिक दामों रुई बेच देनेसे होता है और ऊपरसे वे सटोरियोंके पंजोंसे भी छूट जायेंगे। इसके अर्थ हैं कि अ० मा० चरखा संघको किसानोंको खादीका अर्थशास्त्र समझाना होगा। इसमें तो कोई शक ही नहीं है कि खादी-कार्यकी सभी शाखाओंमें सफलतापूर्वक काम कर पानेके लिए खादी कार्यकर्ताओंको कपास पैदा