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१२६. एक सच्ची सेविकाका प्रयाण

१९२१ की बात है। बेजवाड़ामें स्त्रियोंकी एक बहुत बड़ी सभामें मैंने एक खादी- धारिणी लड़कीको और वहाँ यही एक लड़की ऐसी थी जो खादी पहने थी सभाका प्रबन्ध करते हुए शान्ति और व्यवस्था रखते हुए, और फुर्ती तथा निश्चयके साथ इधर-उधर घूमते-फिरते देखा था। जहाँतक मुझे याद है, उसीने पहले-पहल अपने सभी कीमती गहने, चूड़ियाँ और सोनेकी एक भारी जंजीर दी थी। जब वह अपने सब गहने दे रही थी, मैंने पूछा, 'क्या तुमने अपने माँ-बापसे इजाजत ले ली है ? ' उसने कहा 'मेरे माँ-बाप मेरे किसी काममें दखल नहीं देते और मैं जो चाहती हूँ मुझे करने देते हैं।' अन्नपूर्णादेवी बढ़िया अंग्रेजी बोलती थीं। उन्होंने कलकत्तेके वेथ्यून कालेजमें शिक्षा पाई थी। वह स्त्रियोंकी उस बड़ी भीड़में चन्देके लिए चली गई और गहने तथा रुपये लाई । तबसे बराबर इस आन्दोलनसे उन्होंने सम्बन्ध रखा और सच पूछो तो इसमें अपनेको उत्सर्ग कर दिया। कोकोनाडामें वह महिला स्वयं सेविकाओंकी नायिका थी और उनके उस कामकी कितनोंने ही बड़ी तारीफ की है। दुर्भाग्यसे तब भी उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा न था । उनका विवाह श्रीयुत मगुन्टी बापी नोडु, बी० एस सी०से हुआ था । कोयम्बटूरमें मुझे उसकी मृत्युके कई दिनों बाद सहसा तार मिला कि वह अब नहीं है। और अब श्रीयुत नीडुका पत्र आया है जिसमें से कुछ उद्धरण मैं नीचे दे रहा हूँ[१]

यह सच है कि अन्नपूर्णादेवीको खोकर मैंने एक निष्ठावान अनुयायी ही नहीं उससे कुछ अधिक खोया है। हिन्दुस्तान-भरमें मुझे जिन अनेक बेटियोंके होनेका सौभाग्य प्राप्त है, लगता है कि मैंने उनमें से एकको खो दिया है। और वह सबसे अच्छी बेटियोंमें से थी। उसका विश्वास अटल रहा और इनाम या तारीफकी उम्मीद किये बिना उसने काम किया। कितना अच्छा हो कि अन्नपूर्णादेवीने अपने पतिपर अपनी पवित्रता और एकनिष्ठ भक्तिसे जो नम्र, किन्तु अधिकारपूर्ण प्रभाव प्राप्त किया था, वह प्रभाव एकाधिक पत्नियां प्राप्त करें। मैं उनकी इस मीठी फटकारमें जो सत्य है उसे स्वीकार करता हूँ कि अन्नपूर्णादेवीने मातृभूमिकी सेवामें अपना शरीर गला दिया। मुझे इसमें जरा भी शक नहीं है कि अगर भारतको एक बार फिरसे वैसा ही पवित्र और स्वतन्त्र बनना है, जैसा कि लाखों आदमी आज भी मानते हैं कि वह प्राचीनकालमें था, तो यह जरूरी है कि कितने ही नवयुवक और नवयुवतियोंको इस भली स्त्रीका अनुकरण करना पड़ेगा, और भारतके प्रति अपना फर्ज अदा करनेमें शहीद होना पड़ेगा ।

  1. १. इन्हें यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इन उद्धरणोंमें गांधीजोके तथा उनके खादी, असहयोग और आहार सम्बन्धी प्रयोगों तकके बारेमें अन्नपूर्णादेवीकी कितनी दिलचस्पी थी इसका सजीव विवरण दिया गया था। पत्रलेखकने गांधीजीको अन्नापूर्णादेवीके स्मारकके लिए बनी समितिका सदस्य बनाने के लिए उनको स्वीकृति माँगी थी।