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भाषण : मंगलोरकी सार्वजनिक सभामें

विद्यार्थियोंसे कातनेको कहते हैं तो विद्यार्थी इसे सजाके तौरपर मानेंगे । अतः अपने विद्यार्थियोंको सन्तुष्ट करनेके लिए कमसे-कम उन्हें तो खादी पहननी ही चाहिए ।

हिन्दू धर्ममें कुछ ऐसी बुराइयाँ हैं जैसे अस्पृश्यता, जिनकी ओर मैं आपका ध्यान दिलाऊँगा । यदि भारत-माताको स्वतन्त्र होना है तो प्रत्येक हिन्दूका यह कर्त्तव्य है कि वह इस देशसे इन भयंकर बुराइयोंको बहुत जल्द दूर करनेकी कोशिश करे ।

यहाँ एकत्रित विद्यार्थियोंसे मैं केवल एक बात कहना चाहता हूँ । वह यह कि देशका भविष्य सिर्फ आपपर ही निर्भर है। क्योंकि आप अभी पढ़ रहे हैं इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि आप देशसेवा भी कर रहे हैं और न आपके ज्ञानकी मात्राका ऐसी सेवासे कोई सम्बन्ध ही है। मैं आपको दो या तीन बातें और बताना चाहता था, लेकिन आपको मैं और अधिक रोकना नहीं चाहता।

आपमें से बहुत से लोग जानते होंगे कि स्व० आदरणीय स्वामी श्रद्धानन्दजीके एक शिष्यने यहाँ हिन्दी प्रचार कार्य शुरू किया है। जो लोग हिन्दी सीखना चाहते हैं उन्हें वह हिन्दी सिखायेंगे। मैं आप सबसे, खासतौरपर विद्यार्थियोंसे, प्रार्थना करता हूँ कि आप यह भाषा सीखें। इस भाषाके अध्ययनके बारेमें मैं और जगह दिये गये अपने भाषणोंमें जिक्र कर चुका हूँ और कुछेक लेख भी लिख चुका हूँ । यदि अब भी आप कुछ और जाननेके लिए इच्छुक हों तो मैं आपसे कुछ शब्द और कहूँगा । यदि आप समूचे भारतकी सेवा करना चाहते हैं, यदि आप इस विशाल देशके उत्तर और दक्षिण भागोंमें एकता स्थापित करना चाहते हैं तो आपके लिए हिन्दी सीखना अनिवार्य है।

अन्तमें, जिन लोगोंने पर्याप्त पैसा नहीं दिया है वे अब भी दे सकते हैं। जो स्त्रियाँ दरिद्रनारायणको अपने जेवर मेंट करनेकी इच्छुक हों, वे ऐसा कर सकती हैं। अपनी बहनोंके लिए मैं आपसे यह कहना चाहूँगा कि आपका आदर्श सीतादेवी है। जिस प्रकार वह अपने सहज-स्वाभाविक रूपमें सुन्दर लगती थीं उसी प्रकार आपको भी अपने सौन्दर्यमें वृद्धि करनेके लिए जेवरोंकी कामना नहीं करनी चाहिए । और फिर जब आपकी बहुत-सी बहनें भोजन और कामके अभावमें भूखों मर रही हैं तब आपको जेवर पहनना शोभा नहीं देता । १०० रुपयेकी कीमतका जेवर देनेका मतलब होगा एक दिनमें अपनी १६०० गरीब बहनोंको भोजन देना । ये बहनें भीख नहीं माँगतीं। मैं भी किसी भिखारीको पैसा नहीं देता। मैं उनसे पूरा काम लेता हूँ। तमिलनाडु, त्रावणकोर और अन्य स्थानोंपर बहुत-सी बहनों और छोटे बच्चोंने मुझे विभिन्न प्रकारकी बहुमूल्य वस्तुएँ और जेवर दिये हैं। मैं आप सबको धन्यवाद देता हूँ और भगवानसे प्रार्थना करता हूँ कि वह आपको जो कुछ मैंने कहा उसे समझनेकी शक्ति दे।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २८-१०-१९२७