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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन हजारोंकी संख्याकी शायद मैं पुष्टि न कर पाऊँ, लेकिन सैकड़ों तथाकथित अस्पृश्योंका चरखेके जरिये उद्धार किया गया है। भारतके उत्तरी भागोंमें बहुत-से अस्पृश्य बुनकर थे। लेकिन वे कोई बारीक कपड़ा या डिजाइनदार कपड़ा नहीं, सादा और मोटा कपड़ा बुनते थे, और जब मैनचेस्टरका बना कपड़ा आया तो उन्होंने बुनाई- का काम बन्द कर दिया क्योंकि उन्हें बुननेके लिए कोई कुछ देता ही नहीं था । मैं आश्रममें एक परिवारको जानता हूँ जिसने इस आन्दोलनके आरम्भ होनेके बाद अबतक कई हजार रुपये कमा लिये हैं, और वह परिवार जिसमें पति, पत्नी और एक लड़का भी काम करता है तथा एक बच्चा है, मैं सोचता हूँ कि इस समय ७५ रुपये महीने कमा रहा है और रहनेकी जगह मुफ्त है । मैं आपको इस प्रकारके कई परिवारोंके दृष्टान्त दे सकता हूँ, जो हालाँकि इस परिवार जितना तो नहीं, लेकिन जो सम्मानजनक ढंगसे रहने योग्य कमा रहे हैं। मान लें कि यह आन्दोलन खत्म हो जाये तो ये सभी फिर बेकार हो जायेंगे। मान लें कि यह आन्दोलन आजके मुकाबले कहीं अधिक प्रगति करना जारी रखता है तो ऐसे सैकड़ों और हजारों परिवारोंको बसाया जा सकता है। क्योंकि मैं जानता हूँ कि खादीमें भी अच्छेसे अच्छा कपड़ा तैयार कर सकनेकी हमारी क्षमताकी कोई सीमा नहीं है । लेकिन न जाने कैसे दुर्भाग्यवश ऐसा लगता है कि हमारे अन्दर अपने देशसे प्रेम करनेकी इच्छा समाप्त हो गई है। और इसीलिए आज भारतमें जितनी माँग है उससे ज्यादा खादी है। मैं चाहता हूँ आप, मेरे आदि-द्रविड़ भाई इस स्थितिको बदल दें, क्योंकि आपके बाद आप-जैसे गरीब लोग करोड़ोंकी संख्यामें हैं। जब खादी भारतमें सर्वप्रचलित हो जायेगी तब हमारी आर्थिक प्रगतिको संसारकी कोई शक्ति नहीं रोक सकेगी। अब मैं आप सबको मेरी अपीलपर ध्यान देनेके लिए धन्यवाद देता हूँ ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २८-१०-१९२७