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भाषण : आदि-द्रविड़ोंके समक्ष, कालीकटमें

जो इतना दुस्साहसी या अज्ञानी है, अथवा आप जो शब्द चाहें इस्तेमाल करें -- वह एक ऐसे व्यक्तिको अपने यहाँसे निकाल दे जो ऊपरसे नीचेतक एक सज्जन पुरुष है। ऐसी घटनाएँ होनी नहीं चाहिए। तथापि, मैंने अपनी अपीलको और ज्यादा प्रभावकारी बनानेके लिए आपके सामने इस घटनाका उल्लेख किया है ।

मेरा सुझाव अब यह है कि इस सभाके संयोजक लोग अब निष्क्रिय नहीं बैठेंगे बल्कि आज ही से काममें जुट जायेंगे और नामके लिए ही नहीं, बल्कि काम करनेके लिए और ठोस काम करनेके लिए एक समिति बनायेंगे । समितिके सदस्योंके नाम मुझे भेजिए। मैं आज मंगलोर जा रहा हूँ, और फिर मैं लंका जानेकी आशा कर रहा था किन्तु मैं अभी वहाँ नहीं जा सकूंगा और न जैसी कि मुझे उम्मीद थी, मंगलोरको चार दिन दे सकूंगा। वाइसरायका एक फौरी निमन्त्रण पाकर मुझे लंकाकी यात्रा स्थगित करनी पड़ रही है और मैं मंगलोरसे दिल्ली जाऊँगा । उन्होंने जैसा कि अपने तारमें कहा है, वे चाहते हैं कि वे चाहते हैं कि "फौरी और महत्त्वपूर्ण मामले " के सिलसिलेमें मैं दिल्ली जाऊँ । वहाँसे मैं यथाशीघ्र लौटने और फिर लंका जानेकी आशा करता हूँ। लेकिन आप मुझसे दिल्लीमें पत्रव्यवहार कर सकते हैं जहाँ मैं ३१ तारीखको पहुँचनेकी उम्मीद करता हूँ और में वहां तीन दिन रहूँगा। मैं यह सुझाव इसलिए दे रहा हूँ ताकि आप समय बिलकुल न खोयें । मैं चाहता हूँ कि यह समिति एक ठोस समिति हो, और इस समितिको यह बात अपने सम्मानका विषय बना लेनी चाहिए कि वह इस कामके लिए आवश्यक धनकी एक-एक पाई मलाबारमें ही इकट्ठा करे। मैं अब मलाबारके बारेमें काफी कुछ जानता हूँ। मैं जानता हूँ कि मलाबारमें आपके इस शुद्धीकरण आन्दोलनका आर्थिक बोझ उठानेकी क्षमता है।

और इतना कहने के बाद अब मैं एक दूसरी बात कहना चाहता हूँ। वह अस्पृ- श्यताके सम्बन्धमें नहीं है। लेकिन मेरे सामने बैठे इन मित्रोंको उसका ध्यान दिलाये बगैर शायद मैं सभा छोड़ भी नहीं सकता। एक भी स्त्री या पुरुष जो यहाँ जन्म लेनेके कारण या यहाँ बस जानेके कारण भारतको अपना देश समझता है, खादीकी उपेक्षा करके देशके अत्यन्त गरीब लोगोंकी उपेक्षा कर रहा है; मुझे यह देखकर अवश्य ही गहरी चोट पहुँचती है। हमारे देशमें करोड़ों लोग हैं जो अस्पृश्य नहीं कहलाते, लेकिन जो निरन्तर भूखसे पीड़ित रहने के कारण अस्पृश्य बन गये हैं। वे अस्पृश्य बन गये हैं क्योंकि उनके पास कोई नहीं जाता। उनकी बात कोई सोचता ही नहीं। किसीको चिन्ता नहीं कि वे जी रहे हैं या मर रहे हैं। जंगली तथा अन्य पशु किसी-न-किसी प्रकार कमसे-कम अपना भोजन प्राप्त कर लेते हैं लेकिन ये लोग भूख-पीड़ित होनेके कारण पशुओंसे भी गये-बीते हो गये हैं। मैं चाहता हूँ कि आप उनकी बात सोचें और उनके नामपर तथा उनके वास्ते खादीको छोड़कर अन्य किसी कपड़ेको खरीदनेमें एक रुपया भी न खर्च करें क्योंकि याद रखिए कि इस प्रकार खर्च किये गये प्रत्येक रुपयेका अर्थ है १६ स्त्रियोंके लिए एक दिनका भोजन ।

और फिर मैं आपसे प्रतिदिन थोड़ी कताई करनेके लिए कहना चाहता हूँ । यदि आप कताई नहीं जानते तो आपको सीख लेनी चाहिए। आप अपने ही काते सूतसे कपड़ा बुनवा सकते हैं। मैं आपको सूचित करना चाहता हूँ कि सैकड़ों, शायद हजारों,