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भाषण : आदि-द्रविड़ोंके समक्ष, कालीकटमें

आप लोगोंसे धनकी अपील करनेका है। और मैं उसमें प्राप्त धनका उपयोग केरलमें किये जानेवाले कार्यके लिए एक और बड़ा कोष स्थापित करनेकी दृष्टिसे करूंगा। इस सभामें जो-कुछ प्राप्त होगा उसे मैं अपने पास रखूंगा ताकि उसे यहाँ स्थानीय तौरपर बनाई जानेवाली एक समितिको सौंपा जा सके, क्योंकि मुझे लगता है कि इस ढंगके कामके लिए हमेशा उत्तर भारतसे पैसा आये, यह ठीक नहीं है। उस प्रकार किये गये कामको वास्तवमें ठोस काम नहीं समझा जा सकता। जरूरत इस बातकी है कि हर हिन्दू इस अन्यायको मिटानेके लिए काम करे और कमसे कम इस कामके लिए हर महीने या हर साल कुछ धन देकर जो हानि हुई है उसकी क्षतिपूर्ति करे। और मैं आपको यह विश्वास दिला सकता हूँ कि अभी आप जो धन चन्देमें देंगे उसे मैं तबतक अपने पास रखूंगा जबतक मैं यह नहीं देख लेता कि एक समुचित समितिकी स्थापना हो गई है, उसके पास कुछ अपना कोष हो गया है और वह कार्य करने लगी है ।

यह तो रहा वह काम जो सवर्ण हिन्दुओंको करना है। लेकिन आपने बिलकुल उचित ही कहा है अथवा आपकी ओरसे इस अभिनन्दनपत्रमें बिलकुल उचित ही कहा गया है कि अन्ततः मुक्ति तो आपके अपने प्रयासोंसे ही आयेगी। मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है कि यदि आप अपनी शक्तिका अनुभव आज कर लें तो आप आज ही अपनेको स्वतन्त्र कर सकते हैं। लेकिन इस अभिनन्दनपत्रमें कहा गया है, और ठीक ही कहा गया है कि इस समय आपके लिए अपने अन्दर उस शक्तिका अनुभव कर सकना आपकी सामर्थ्यके बाहरकी बात है। लेकिन कुछ चीजें हैं जो आप फौरन कर सकते हैं। यदि आप शराब पीते हैं तो आपको शराब छोड़ देनी चाहिए। यदि आप सिगरेट पीते हैं तो आपको सिगरेट छोड़ देनी चाहिए। यदि आप मुर्दा जानवरोंका मांस खाते हैं तो आपको वह भी छोड़ देना चाहिए। कोई हिन्दू गायका वध करे या गोमांस खाये, इसे आप असह्य समझते हैं न ? इसका निषेध प्रत्येक हिन्दूके लिए बहुत कड़ाईसे किया गया है । और मेरी अपनी नम्र रायमें गो-बध करने या गो-मांस खानेके निषेधके पीछे एक बहुत गहरा अर्थ छिपा है जो ऊपरसे दिखाई नहीं पड़ता। इसलिए मैं चाहूँगा कि आप इस आदतका त्याग कर दें। मैंने अभी अपने मेजबानसे सुना है कि आपमें से बहुत से लोग गो-मांस खाना छोड़ रहे हैं। मुझे यह सुनकर बहुत खुशी है। आप गो-मांस खाते रहे हैं, ऐसा सोचनेके लिए भी मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ। लेकिन आपको याद होगा कि मैंने 'यदि ' लगाकर बात कही थी। मैं जानता हूँ कि दक्षिण भारतके अन्य हिस्सोंमें आदि-द्रविड़ लोग गो-मांस खाते हैं। और यदि आप थोड़ा-थोड़ा करके आत्म-शुद्धिका यह सिलसिला जारी रखेंगे, तो आप अपनेमें क्रमिक विकास होते देखेंगे, और आपमें आत्म-विश्वास भी उत्पन्न होगा ।

अब मेरा इरादा आपसे कुछ और कहनेका नहीं है क्योंकि मैं वह काम करना चाहता हूँ जो मैंने अपने लिए निश्चित किया है। लेकिन मैं आशा करूंगा कि चूंकि आप यहाँ लाये गये हैं या स्वयं आये हैं, अतः जिन लोगोंने सभा आयोजित की है