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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्तिम आरोप, जिसमें एक विशिष्ट घटनाका उल्लेख है, कितना सच है। लेकिन मैं यह जानता हूँ कि आपके अभिनन्दनपत्रमें कही गई बातें मोटे तौरपर सच हैं। और ये बातें सच हैं क्योंकि हम लोग भी, जो यहाँ एकत्र हुए हैं और आपका मुझे अभि- नन्दनपत्र देना तथा मेरा भाषण करना देख रहे हैं, आपके हितोंकी उपेक्षा करते रहे हैं और कर रहे हैं। यदि हम लोग, जो अपनेको गलत तौरपर स्पृश्य कहते हैं, आपके लिए सगे भाइयोंकी तरह हमदर्दी महसूस करते तो इस प्रकारकी चीजें एक दिन भी नहीं टिक सकती थी। लेकिन निराशाके काले बादलोंमें भी आशाकी रजत-रेखा मौजूद है। हिन्दुओंकी आत्मा छटपटा उठी है और इस समय सारे भारत- भरमें आपके प्रति किये गये भयंकर अन्यायोंका थोड़ा प्रायश्चित्त करनेका एक जबर्दस्त आन्दोलन चल रहा है। बहुतसे भारतीय जिन्हें महान व्यक्तियोंके रूपमें जाना-माना जाता है, आज इस मामले में दिलचस्पी ले रहे हैं। इसलिए मेरे मनमें कोई सन्देह नहीं है कि वह समय शीघ्र आ रहा है जब ये सब निर्योग्यताएँ बिलकुल समाप्त हो जायेंगी । और मुझे इसमें भी सन्देह नहीं है कि यदि ये निर्योग्यताएँ हिन्दुओं द्वारा किये गये त्याग और प्रायश्चित्तके फलस्वरूप दूर नहीं हुई तो स्वयं हिन्दू-धर्म समाप्त हो जायेगा ।

आपने अभिनन्दनपत्रमें सुझाव दिया है या आपकी तरफसे यह सुझाव दिया गया है कि सर्वत्र ऐसी संस्थाएँ स्थापित की जानी चाहिए जिनमें आपके बच्चोंको वहीं रहकर प्रशिक्षण प्राप्त करनेकी व्यवस्था हो । निःसन्देह यह विचार सराहनीय है। स्वयं आपने श्री केलप्पन नायरका नाम लिया है। वह ऐसी एक संस्था चला रहे हैं। यहाँसे कुछ ही दूर शबरी आश्रम भी है। लेकिन मैं यह जानता हूँ कि आपकी आवश्यकताओंके लिहाजसे ये बिलकुल नाकाफी हैं। और मैं आपको तथा उपस्थित लोगोंमें से प्रत्येकको बताना चाहता हूँ कि यदि और संस्थाएँ स्थापित नहीं हुई हैं तो इसका कारण घनका अभाव नहीं है बल्कि कार्यकर्त्ताओंका अभाव है। आज भारतमें ऐसे बहुतसे हिन्दू हैं जिन्हें यदि यह विश्वास दिलाया जा सके कि इस कामको करनेके लिए ईमानदार, उद्यमशील, आत्मत्यागी और होशियार कार्यकर्त्ता मौजूद हैं तो वे जितने धनकी जरूरत हो उतना धन देनेको तैयार हैं। लेकिन सवर्ण हिन्दुओंके लिए यह लज्जाकी बात है कि इस कामके लिए ऊपर बताये गये ढंगके कार्यकर्ताओंकी संख्या ज्यादा नहीं है, और मैं यह भी जानता हूँ कि स्थानीय लोगोंके पास इस कामके लिए पर्याप्त पैसा भी नहीं है। इस कामके लिए भी आवश्यक धन- का सबसे बड़ा हिस्सा उत्तर भारतसे आता है। ऐसा नहीं होना चाहिए, और सुधारका यह आन्दोलन, जो हिन्दू-धर्ममें कबका हो जाना चाहिए था, भारत-भरमें वास्तवमें फैल जाये, इसके लिए यह जरूरी है कि हर जगह हिन्दू लोग आगे आयें और स्थानीय तौरपर धन और कार्यकर्ता जुटाकर इस सुधारको संगठित करें । और इसके लिए मैं एक ठोस सुझाव देना चाहता हूँ। मेरी अपेक्षाके विपरीत, यह सभा आदि द्रविड़ोंकी कम, सवर्ण हिन्दुओं तथा अन्य लोगोंकी ज्यादा है। इसलिए सभाके अन्तमें मेरा विचार खादी-कोषके लिए नहीं, बल्कि इस प्रकारके कामके लिए