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१२४. भाषण : आदि-द्रविड़ोंके समक्ष,

२६ अक्टूबर, १९२७

प्रिय मित्रो,

आपके बीच आकर मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हुई है। मुझे इस बातकी भी खुशी है कि आप सब ठीक मेरे सामने बैठे हैं जिससे मैं आप सबको अच्छी तरह देख सकता हूँ ।

मुझे यहाँ ये अलग-अलग विभाग देखकर कुछ दुख होता है। लेकिन शायद यह अनिवार्य था मेरी सहूलियतके लिए अनिवार्य था। मैंने अन्य जगहोंकी तरह यहाँ भी आपको और बड़ी संख्यामें देखनेकी आशा की थी।

मैंने आपका पूरा अभिनन्दनपत्र पढ़ लिया है क्योंकि मेरे पास उसका एक अनुवाद मौजूद है। आप यह नहीं चाहते कि मैं आपको आश्वासन दूं कि मेरा दिल आपके साथ है। अगर कहने-भरसे मैं आपमें से एक बन सकूं तो मैं तो अपनेको नायडी कह ही चुका हूँ। लेकिन मैं जानता हूँ कि इस समय इस तरहकी घोषणाएँ करना शायद घृष्टता है। अभीतक मैं एक भी नायडीके सम्पर्कमें नहीं आया हूँ । एक बार सिर्फ एक ही बार मैंने एक नायडीको देखा अवश्य था लेकिन उस समय भी उसके स्पर्शका लाभ मैं नहीं पा सका। क्योंकि हम दोनोंके बीचमें एक खौफनाक बाड़ थी। मैं उसे बाड़का चक्कर लगाकर सड़कपर आनेके लिए राजी नहीं कर सका जहाँ मैं और मेरे मित्र खड़े थे, और मैंने उस समय अपने-आपको यह कहकर आश्वस्त कर दिया कि मेरे पास बाड़का चक्कर लगाकर उस नायडी मित्रके पास तक जानेका समय नहीं है। इसलिए यदि उपस्थित श्रोता-समुदायमें से या और कहीं कोई मुझपर थोथी बातें करनेका आरोप लगायें तो मैं अपनेको अपराधी मान लूंगा । लेकिन अपना अपराध स्वीकार करनेके साथ ही साथ मैं बेहिचक यह भी घोषित करूंगा कि नायडी लोगोंके लिए और आप लोगोंके लिए मेरा मन उतना ही व्यथित होता है जितना कि दुनियामें किसीका भी हो सकता है। मुझे भय है कि यह लम्बा अभिनन्दनपत्र आप नहीं समझ सके हैं, और न इसे आपको समझाया ही गया है। इसलिए मैं आपको बताऊँगा कि इस अभिनन्दनपत्रमें क्या कहा गया है। उसका सार यह है कि जिन लोगोंको अस्पृश्य, अनुपगम्य और अदर्शनीय कहा जाता है उनके साथ उनके जन्म स्थानमें ही न केवल समाजसे बहिष्कृत लोगोंकी तरह बल्कि दासोंकी तरह व्यवहार किया जाता है। वे निर्जीव सम्पत्तिकी तरह हैं जिसे बेचा और खरीदा । उसमें कहा गया है कि आप लोगोंको सड़कोंको इस्तेमाल करनेका वह अधिकार भी नहीं है जो संसारके किसी भी भागमें मनुष्यको प्राप्त होना चाहिए, और काली- कटके एक म्युनिसिपल स्कूलमें एक लड़कीको दाखिला दिलानेमें आपको जो सफलता मिली उसके लिए आपको बहुत कठिनाइयाँ उठानी पड़ीं। मैं नहीं जानता कि यह

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