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भाषण : कालीकटकी सार्वजनिक सभामें

किसी भी सूरतमें तुच्छ नहीं हैं। यह आत्म-संयमकी कमीका लक्षण है। और आत्म- संयमका यह अभाव भारत-भरमें छात्रोंके शारीरिक स्वास्थ्यको नष्ट कर रहा इसलिए मैं छात्रोंसे आग्रह करता हूँ कि मैंने जो कुछ कहा है उसपर भली प्रकार सोचें और अपने जीवनको नये सिरेसे ढालें । हिन्दू धारणाके अनुसार विद्यार्थी जबतक विद्याध्ययन करता है तबतक उसे ब्रह्मचारी रहना चाहिए। यदि कोई विद्यार्थी शरीर और मन, दोनों ही मामलोंमें आत्म-संयम बरतना चाहता है तो उसके लिए उन सभी चीजोंका त्याग आवश्यक है जो अनावश्यक हैं।

अब दूसरे अभिनन्दनपत्रोंकी बात करूँ । प्रत्येक अभिनन्दनपत्रमें चरखेके सन्देशका उत्साहपूर्ण समर्थन हुआ देखकर मुझे खुशी है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि हाथ-कते सूतके कपड़ोंको छोड़कर हमने भारतकी मानवताके प्रति अपराध किया है, और ऐसा लगता है कि इस मामलेमें कालीकट सबसे पहला अपराधी था क्योंकि मैं समझता हूँ कि इसका नाम कालीकट इसलिए पड़ा क्योंकि यह पहला बन्दरगाह था जहाँ बाहरसे कैलिको (सूती वस्त्र ) का आयात किया गया। लेकिन अब मैं खादीकी शक्तिमें आपका विश्वास देखता हूँ, और चूँकि आपने स्वयं मुझे बताया कि कालीकट खुद तो एक समृद्ध नगर है, लेकिन इसके चारों ओरका प्रदेश गरीबीसे कराह रहा है, इसलिए अब आपके लिए यही शोभनीय है कि जिस बुराईकी शुरूआत कालीकटने की थी, उस बुराईको आप दूर कर दें। और यदि आप अपने अभिनन्दनपत्रोंमें कही गई बातोंके प्रति सच्चे हैं तो मैंने जो बात छात्रोंसे कही है वही आपसे भी कहूँगा कि आप सब लोग विदेशी कपड़ेका त्याग कर दें और खादीको अपनायें। लेकिन यह भी काफी नहीं है। आपको इस स्थानपर खादीके संगठन और उत्पादन कार्यमें अपनी प्रतिभा लगानी है। छात्रों समेत आप नागरिकगण यह काम स्वयं यज्ञकी भावनासे सूत कातकर कर सकते हैं। और इस प्रकार कताईका वातावरण पैदा करनेके बाद आप कताईका सन्देश अपने चारों ओरके गाँवोंमें ले जाइए और गाँववालोंसे यह अपेक्षा कीजिए कि वे समस्त मलाबारके लिए पर्याप्त सूत कातें। यदि आप ऐसा करेंगे तो देखेंगे कि आप देशके धनमें प्रतिव्यक्ति ४ रुपये प्रतिवर्षकी वृद्धि कर सकते हैं, और यह आप बिना किसी लाभदायक धन्धेको हटाये या बिना अपने समयका ऐसा एक मिनट भी खोये कर सकेंगे जिसका उपयोग आप अन्यथा किसी उपयोगी काममें करते । कर्त्तव्यका तकाजा है कि हमारे पूर्वजोंने जो पाप किया था, उसका हम यह प्रायश्चित्त करें।

फिर, अस्पृश्यताकी महान बुराई भी देशके इस भागमें गहरी जड़ें किये हुए है। अनुपगम्यता और अदर्शनीयताके रूपमें, यहाँ वह और अधिक तीव्र रूपमें दिखाई देती है। हम हिन्दू लोग जितनी जल्दी इस बुराईसे मुक्ति पा जायें उतना ही हमारे लिए और हिन्दू-धर्मके लिए अच्छा है।

मद्यपानकी बुराई देशके गरीब लोगोंका पौरुष क्षीण कर रही है। यदि हम देशके गरीबसे-गरीब लोगोंके प्रति हमदर्दी रखते हैं तो हमारे लिए उचित है कि हम उनके बीच काम करें और उन्हें इस बुरी लतसे दूर करें। और आपको तबतक सन्तोष नहीं करना चाहिए जबतक आप देशमें पूर्ण मद्यनिषेध लागू न करा लें।