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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। मैं जानता हूँ कि सर्वशक्तिमानके नामपर पशुओं और पक्षियोंकी बलि देनेकी प्रथा एक पापपूर्ण अन्धविश्वास है । और अब समय आ गया है कि ऐसे हिन्दू, वे जहाँ भी हों, यह पापपूर्ण कर्म बन्द कर दें । मैं उस हर आन्दोलनके साथ हूँ जिसका उद्देश्य इस अमानुषिक प्रथाको बन्द कराना है। मुझे इस जानकारीसे सन्तोष मिलता है कि यह प्रथा इस देशमें बढ़ नहीं रही है, बल्कि दिनोंदिन बदनाम होती जाती है । अभी हाल ही में त्रावणकोरकी राजमाताने इस प्रकारकी सभी बलियोंको निषिद्ध कर दिया है, और जो चीज राजमाताने राजाज्ञा निकाल कर की है, वही चीज आप देशके इस भागमें इस प्रथाके विरुद्ध लोकमत तैयार करके कर सकते हैं ।

लेकिन अब मैं अपने भाषणमें मुझे जिन अन्य विषयोंकी चर्चा करनी है उनपर आऊँ। मुझे खुशी है कि छात्रोंने एक अभिनन्दनपत्र दिया है। उनका मुझे अभिनन्दनपत्र देना कोई नई बात नहीं है। सारे भारत-भरमें छात्र-जगत्का विश्वास और मैत्री पानेका मेरा सौभाग्य रहा है। लेकिन मैं इस अभिनन्दनपत्रके ऊपर अपनी खुशी इसलिए जाहिर कर रहा हूँ क्योंकि इसमें खादीके बारेमें एक वादा किया गया है। छात्रोंने अपने अभिनन्दनपत्रमें पूरी गम्भीरतापूर्वक यह वचन दिया है कि वे अब आगेसे खादीको छोड़ और कुछ न पहनेंगे। मैं छात्रोंको इस बातकी याद दिलाना चाहता हूँ कि वचन एक बहुत पवित्र वस्तु है। हमारे देशमें और अन्य देशोंमें भी

कसर विशेष रूपसे उत्साही छात्रों द्वारा तरह-तरहके वादे कर लेनेका चलन है। वचन देनेकी यह आदत, अगर उसके साथ ही उस वचनको हर कीमतपर निभानेका संकल्प भी न हो, तो वास्तव में एक बुरी आदत है । यदि मेरी याददाश्त ठीक है तो शायद मुझे कालीकटके एक शिक्षकका करुण पत्र मिला था जिसमें मुझसे छात्र- जगत्के सामने बोलने और उनकी कुछ कमजोरियोंपर जोर देनेको कहा गया था । संसार-भरके शिक्षा शास्त्री दिनोंदिन इस बातको महसूस कर रहे हैं कि कोरी किताबी शिक्षा, जबतक वह चरित्रकी ठोस बुनियादपर न टिकी हुई हो, सर्वथा व्यर्थ होती है; यही नहीं, बल्कि ऐसी शिक्षा एक हानिकारक उपलब्धि है। और चरित्र- निर्माणका आरम्भ सत्यका पूर्ण पालन करनेसे होता है। और जो वचन एक बार दे दिया गया, उसका पालन न करना सत्यसे दूर हटना है। बिना सोचे-विचारे और जल्दीमें वचन न देना कोई बुरी चीज नहीं है। लेकिन एक बार वचन दे देनेके बाद उस वचनको निभाना और उसे पूरा करना सर्वथा आवश्यक है, भले ही इसमें प्राण ही क्यों न चले जायें। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि वादा करने के बाद छात्र लोग अब उसे निभायेंगे ।

लेकिन और भी चीजें हैं जिनकी ओर इस पत्रमें मेरा ध्यान आकृष्ट किया गया था। उसमें कहा गया था कि छात्र लोग बिना सोचे-विचारे गलत दिशामें बह रहे हैं और ऐसी चीजें कर रहे हैं जिन्हें यदि उनपर गहरा विचार न किया जाये तो मामूली बुराइयाँ ही माना जायेगा। मेरा ध्यान छात्रोंमें बढ़ती हुई धूम्रपान करनेकी और बहुत ज्यादा चाय या कहवा पीनेकी आदतकी ओर खींचा गया था। ये चीजें तुच्छ प्रतीत हो सकती हैं, लेकिन मैं अनेक छात्रों के अनुभवोंसे जानता हूँ कि ये