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१२०. पत्र: चंद त्यागीको

दीपावली [२५ अक्टूबर, १९२७]

[१]

भाई चंद,

आपका पत्र मीला है। चांद्रायणका व्रतके लीये अब तो खामोश रहीयो । आश्रम में आ गये यह जानकर मुझे आनंद हुआ है। क्या काम करते हो ?

बापुके आशीर्वाद

जी० एन० ३२६९ की फोटो-नकलसे ।

१२१. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

मंगलवार, आश्विन बदी अमावस्या, दीपावली
[२५ अक्टूबर, १९२७ ]

[२]

बहनो,

तुम्हारा पत्र मिल गया। तुम घबराओ मत । सब शुद्ध हों तभी एक भी शुद्ध होगा, यह उलटी नीति मत ग्रहण करना । नियम यह है : एक शुद्ध हो जाये तो दूसरे होंगे ही। इस सम्बन्धमें हमारे यहाँ दो कहावतें हैं: (१) आप भला तो जग भला, (२) यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे । अगर ऐसा न हो तो दुनियाके कल्याणकी कभी कोई आशा ही नहीं रखी जा सकती ।

राम जगतकी लाज रखता है। सीता स्त्री-मात्रके लिए आधार है। इसलिए निराश न होकर सब शुद्ध बननेके लिए मेहनत करोगी और अपने कर्त्तव्यमें परायण रहोगी तो तुम देखोगी कि सब ठीक हो जायेगा । 'हारना' शब्द हमारे शब्दकोशमें हो ही नहीं सकता।

देखना है, तुमने नये वर्ष में कैसे नये निश्चय किये हैं। जो न बोले उसे बुल- वाना; जो न आये उसके घर जाना; जो रूठे उसे मनाना और यह सब उसके मलेके लिए नहीं, परन्तु अपने भलेके लिए करना । जगत लेनदार है और हम उसके कर्जदार ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६७२) की फोटो-नकलसे ।
  1. १. गांधीजीने पहले चंद त्यागीको आश्रम जानेको कहा था; देखिए खण्ड ३३, पृष्ठ १८५ ।
  2. २. पत्रमें आश्रमकी बहनों को अपने लड़ाई-झगड़े दूर करनेकी सलाह दी गई है, वर्षका निश्चय उसीके आधारपर किया गया है। देखिए "पत्र : आश्रमकी बहनोंको ", १७-१०-१९२७ ।