पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/२१४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

११७. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

२४ अक्टूबर, १९२७

प्रिय चार्ली,

आखिरकार मुझे तुम्हारे हाथसे लिखा एक पत्र प्राप्त हो गया ।

मैं तुम्हें यह बताना तो भूल गया कि सर पुरुषोत्तमदासने मुझे एक पत्रमें लिखा था कि वह पूर्व आफ्रिका जानेके लिए समय नहीं निकाल सकते। उन्होंने सरोजिनी देवीका नाम सुझाया है। वैसे उन्हें भेजना अच्छा ही है। फिर भी इसके बारेमें सोचना और मुझे बताना कि तुम्हारा क्या सुझाव है।

कैप्टेन पेटावल अपनी योजनामें मेरा सहयोग चाहनेके लिए मुझे पत्रपर-पत्र भेज रहे हैं। पता नहीं क्यों मेरे मनमें उनके प्रति भरोसा नहीं पैदा होता । तुमने मुझे उनके प्रति सचेत कर दिया है। अब वह चाहते हैं कि उनकी योजना और कार्यके सम्बन्धमें मुझे जानकारी देनेके लिए मैं किसीको नियुक्त करूँ। मजबूरीमें मैंने उनसे कह दिया है कि यह मामला मैंने तुम्हें और सतीश बाबूको सौंप दिया है। क्या तुम ऐसा कुछ कहना चाहोगे जिसे मैं उन्हें बता सकूं ? उन्होंने अब डा० रायसे एक उत्साहवर्द्धक प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिया है। उन्हें जितने अधिक प्रमाणपत्र मिलते जाते हैं, मेरा असन्तोष उतना ही बढ़ता जाता है।

गुजरातको ३० लाख रुपये सार्वजनिक चन्देसे नहीं मिले हैं बल्कि उसे सरकारने भारी रकम दी है। कलकत्तामें गुजरातियों द्वारा सारी रकम उड़ीसाको दे देनेका विचार मुझे अच्छा लगा। प्रश्न यह है कि तुम्हारे पास इस रकमके उपयोगके लिए भले और सक्षम पुरुष हैं भी कि नहीं। गुजरातमें लगभग १००० कार्यकर्ता संग्रह के काममें लगे हुए हैं ।

अँगुलीकी तकलीफकी बात सुनकर मुझे काफी परेशानी हुई है। अँगुली न मुड़नेकी शिकायत तो एक नई बात हो गई। जब तुम मुझे इसके ठीक-ठाक होनेकी सूचना दोगे तब मैं चैनकी साँस लूंगा ।

इस बातकी काफी सम्भावना है कि मैं कुछ दिनके लिए लंकाकी यात्रा स्थगित कर दूं और दिल्ली चला जाऊँ । कलतक मुझे निश्चित रूपसे पता चल जाना चाहिए ।

हम सब लोगोंका प्रेम स्वीकार करो ।

मोहन

[ पुनश्च : ]

सोराब भारतके लिए रवाना हो गया है। स्मारकके सम्बन्धमें मैं निश्चित रूपसे उससे बातचीत करूंगा। मैं तुम्हारी इस बातसे बिलकुल सहमत हूँ कि यदि रुस्तमजी जीवित होते तो वे सारी रकम भेज देते ।

मोहन

अंग्रेजी (जी० एन० २६२३) की फोटो-नकलसे ।