पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/२११

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८३
पत्र : मीराबहनको

विरोधमें कुछ भी कहा जाये कि इस युगमें सच्चा त्याग 'भगवद्गीता' में जिस त्यागका उपदेश हुआ है वह त्याग. लाखों क्षुधा-पीड़ितोंके लिए तथा उनके नामपर हाथ-कताई करना है। यदि विद्यार्थियोंको अपने और लाखों क्षुधा-पीड़ितोंके बीच जीवन्त सम्बन्ध स्थापित करना है, जो कि उन्हें करना भी चाहिए, तो वे यह देखेंगे कि चरखेके अलावा कोई और चीज इतनी ताकतवर नहीं है जो इस कार्यमें उन्हें मदद दे सके।

नगरपालिका द्वारा दिये गये अभिनन्दनपत्रमें स्कूलोंके सम्बन्ध में चरखेका उल्लेख देखकर मुझे प्रसन्नता हुई और मुझे उम्मीद है कि नगरपालिका निकट भविष्यमें अपने इस निश्चयको कार्य रूप देगी । अब और कुछ कहकर मुझे आपको ज्यादा नहीं रोकना चाहिए क्योंकि अभी मुझे आपका कुछ समय इन वस्तुओंको बेचनेमें भी लेना है। इस बीच स्वयंसेवक जनताके बीच पहुँचेंगे और उन लोगोंसे जिन्हें खादीमें श्रद्धा और जिन्होंने खादी कोषके लिए रुपया नहीं दिया है, रुपया इकट्ठा करेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २५-१०-१९२७

११५. पत्र : मीराबहनको

२४ अक्टूबर, १९२७

चि० मीरा,

तुम्हारे सभी पत्र मुझे मिले हैं, और उन्हें पाकर प्रसन्न हुआ हूँ ।

तुमने पूछा है कि जो पत्र भटक गया है वह कहाँ चला गया होगा। मेरे लिखनेमें कोई व्यतिक्रम नहीं हुआ है। इसलिए यथासमय वह तुम्हें मिल जायेगा ।

मुझे तुमने अपना वजन अभीतक नहीं लिखा ।

भणसालीके[१] मामलेका तुम्हारा विश्लेषण मैं स्वीकार करता हूँ। वह इतने अच्छे आदमी हैं कि मैत्रीपूर्ण आलोचनाका बुरा नहीं मान सकते। इसलिए तुम्हें चाहिए कि उनसे बात करो और देखो कि उनके साथ क्या कर सकती हो । यही बात छोटेलालके साथ भी है। उसे भी साधकर नियंत्रणमें लाना होगा। शायद वह तुम्हारी बात सुनेगा। मुझे बहुत खुशी है कि तुम इन सब बीमार लोगोंकी देखभाल कर रही हो और मुझे रोज सूचना दे रही हो । दुग्धशाला और पिंजरापोल देखकर वहाँसे जो विवरण भेजोगी उसकी मुझे प्रतीक्षा रहेगी।

मैंने जो थोड़ा आराम लिया है उसे निरोधक कदम भी नहीं कहा जा सकता । वह तो सावधानी मात्र था । वस्तुत: तिरुपुर यात्राके दौरान जिन दो स्थानोंको मैंने छोड़ दिया था, वहाँ जाकर मैंने अपने इस आरामकी कीमत चुका दी । लेकिन इस निर्दोष विक्षेपने तुम्हारे धीरजकी अच्छी परीक्षा ले डाली। तुम्हें किसी खबरसे, बुरी खबरसे भी प्रभावित नहीं होना चाहिए। तुम्हें अपने मनमें यह नहीं सोचना चाहिए, "कितना अच्छा होता कि वह वहाँ गये ही न होते या ज्यादा आराम लिया होता ।

  1. १. जे० पी० भणसाली, सत्याग्रह आश्रम के सुपरिचित सदस्य ।