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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जुआरियोंका वास्तवमें कोई काम नहीं है। मद्यपान एक ऐसी बुराई है जिसने संसारके हजारों घरोंको बरबाद कर दिया है; और खादीसे सम्बन्धित बुनकरोंसे यह अपेक्षा की जाती है कि कमसे-कम वे तो शराब पीकर अपने शरीर दूषित नहीं करेंगे । शराबके नशेमें चूर व्यक्तिको पत्नी और बहनमें कोई भेद नजर नहीं आता। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि तिरुपुरके नवयुवक जागेंगे और जो लोग शराबके आदी हैं उनके बीच जाकर काम करेंगे तथा बिनम्रतापूर्वक समझा-बुझाकर उनकी शराबकी आदतको छुड़ायेंगे ।

जुआ खेलना एक पाप है जो जुआरीको नीचे गिराता है और उससे असंख्य अपराध करवाता है। इसलिए इसे छोड़ देना चाहिए। आप जानते हैं कि दक्षिणका यह भाग हत्याके अपराधोंके लिए कुख्यात है । मुश्किलसे कोई सप्ताह ही ऐसा जाता हो जब हत्याके कुछ मामले न होते हों और यह सर्वविदित है कि जहाँ कहीं भी शराब और जुएका बोलबाला होता है वहाँ हत्याएँ भी जरूर होती हैं - यह इन बुराइयोंका एक अनिवार्य परिणाम है । यदि समाजमें कोई भी ऐसा व्यक्ति है जो जीवनको इतना सस्ता समझता है कि वह थोड़ेसे उत्तेजन या मामूली-सा बहाना मिलते ही किसीकी जान ले ले तो हमें अपने ऊपर शर्म आनी चाहिए। यदि आपके यहाँ समाज-सेवक हैं, जो कि निस्सन्देह हैं, तो मैं चाहता हूँ कि वे इस अपराधका अध्ययन करें, इसके ठीक-ठीक कारण जानें तथा इस अच्छे जिलेसे इस लज्जास्पद बुराईको दूर करनेका प्रयत्न करें ।

आज सुबह म्युनिसिपल हाई स्कूलके हेडमास्टर तथा कुछ विद्यार्थियोंसे मिलनेपर मुझे बड़ा हर्ष और सुख हुआ। उन्होंने मुझसे गीता-कक्षाका उद्घाटन करनेके लिए कहा । और इस उत्सवको मनानेके लिए विद्यार्थी और शिक्षकगण काफी सवेरे लगभग पौने चार बजे ही आ गये । आशा है कि विद्यार्थी अपनेको इस पवित्र अध्ययन के योग्य बनायेंगे और एक बार इस महान कार्यको आरम्भ कर देनेके बाद इससे न तो पीछे हटेंगे और न इसे टालेंगे । यह सही दिशामें उठाया गया कदम है। इस समय देशमें साहित्यिक शिक्षाका भूत सवार है। लेकिन चरित्र निर्माणकी ओर ध्यान कम दिया जाता है। मेरी नम्र रायमें तो जिस शिक्षाका निर्माण चरित्रको ठोस बुनियादपर न हुआ हो वह निर्जीव शरीरके समान है। एक हिन्दू बालकको 'भगवद्- गीता' का श्रद्धापूर्वक अध्ययन करनेसे जो चारित्रिक दृढ़ता प्राप्त होती है, उतनी अन्य किसी चीजसे नहीं हो सकती। विद्यार्थी इस बातका ध्यान रखें कि 'भगवद्गीता' का अध्ययन उन्हें अपना संस्कृतका ज्ञान या स्वयं 'गीता 'का ज्ञान प्रदर्शित करनेके लिए नहीं करना है। वे ध्यान रखें कि इसका अध्ययन उन्हें आध्यात्मिक सुख प्राप्त करनेके लिए और इसकी सहायतासे अपनी सारी मुसीबतोंपर विजय प्राप्त करनेके लिए करना चाहिए। जो भी व्यक्ति इस पुस्तकका श्रद्धापूर्वक अध्ययन करता है उसका देश-सेवक और जन-सेवक बनना लाजिमी है। लोकमान्य तिलकने हमें बताया है कि 'गीता' मुख्य रूपसे कर्मका सन्देश है - ऐसे कर्मका जो निःस्वार्थ है । निःस्वार्थ कर्मका तात्पर्य सेवा और त्यागके अलावा और कुछ नहीं है। मैं साहसपूर्वक यह कह सकता हूँ, चाहे इसके