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भाषण : तिरुपुरकी सार्वजनिक सभामें

काफी सुधार कर लिया है। लेकिन जब मैं अपने अभीष्ट लक्ष्यकी दृष्टिसे तथा आपसे और सम्पूर्ण भारतसे जो-कुछ अपेक्षित है उस दृष्टिसे सोचता हूँ तो मुझे यह मानना पड़ता है कि प्रगति अपेक्षाकृत अच्छी होते हुए भी सन्तोषजनक नहीं है। सम्पूर्ण भारतमें हम जो कुछ करना चाहते हैं, उसे देखते हुए तो स्वाभाविक है कि इस राजधानीको अपने आसपासके क्षेत्रोंमें पैदा होनेवाली सारी रुईका उपयोग करना चाहिए। मैं चाहता । कि आप अपनी सेवाके बलपर कपासके उत्पादकोंको इस प्रकार अपने वशमें कर लें कि वे अपनी रुई केवल आपको ही बेचें, और मैं यह चाहता हूँ कि अपनी उसी सेवाके अधिकारके द्वारा आप गरीब ग्रामीणोंको इस प्रकार प्रभावित करें कि एक भी घर ऐसा न बचे जिसमें चरखा न चलता हो । और एक भी बुनकर ऐसा न बचे जो हाथ-कते सूतके अलावा और कुछ बुने । आप ऐसा न सोचें कि यह आपके बसके बाहरकी बात है। यदि आप अपने शहरको खादीकी राजधानी कहनेका विशेषाधिकार कायम रखना चाहते हैं तो आपको यह लक्ष्य तो रखना ही चाहिए। और यदि आपने गरीब ग्रामीणोंके शोषणके ध्येयसे नहीं बल्कि महज उनकी सेवा करनेके उद्देश्यसे कार्य किया तो बहुत कम समयमें ही ग्रामीणों और रुईके उत्पादकोंपर आपका जो प्रभाव होना चाहिए वह आप जमा लेंगे। लेकिन यह तभी सम्भव होगा जब खादीके विभिन्न व्यापारियोंके बीच हार्दिक सहयोग हो। आपको खादीके जरिये रुपया कमानेकी अपनी व्यक्तिगत इच्छापर भी अंकुश रखना होगा। इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं कि खादी एक ठोस आर्थिक योजना है। यह आपको जीविकाका बढ़िया साधन और उचित लाभ प्रदान कर सकती है। हाँ, उसमें ब्याजकी ऊँची दरें लेनेवाले व्यक्तियोंके लिए कोई स्थान नहीं है, और न होना ही चाहिए। मैं स्वयं ऐसे संगठनोंको सन्देहकी दृष्टिसे देखता हूँ जो अपनी पूंजीपर २५ प्रतिशत ब्याज देनेमें समर्थ हों या २० प्रतिशत देते हों। यह बात तो आसानीसे चुनौतीसे परे, एक सामान्य सिद्धान्तके रूपमें मानी जा सकती है कि जहाँ कहीं भी अधिक और अपरिमित लाभ प्राप्त हुआ है वह गरीबोंके बूतेपर ही हुआ है। लेकिन खादीकी सारी अवधारणा तो यह है कि हमें, जो खादीके प्रचारमें सक्रिय भाग ले रहे हैं, अपने-आपको इन क्षुधा-पीड़ित ग्रामीणोंका न्यासी समझना चाहिए। सम्मानजनक जीवन-यापन करनेके लिए जो काफी है, उसके सिवा जितनी भी आमदनी हो वह सब इन ग्रामीणोंको लौटा दी जानी चाहिए । आप देखेंगे कि जबतक यहाँ ऐसी हाथ-कताई जारी रहती है तबतक राजा अपनी इस छोटी-सी राजधानीके साथ रहेगा और इसकी जितनी तारीफ सम्भव है, उतनी तारीफ चारों ओर करेगा ।

लेकिन दरिद्रनारायणकी इस पेढ़ीके कुछ और भी साझेदार हैं और वे हैं कतैये और बुनकर। मुझे मालूम है कि इस सभामें कतैये नहीं हैं। लेकिन कुछ बुनकरोंके यहाँ उपस्थित होनेका मुझे पता है । जो बुनकर यहां मौजूद हैं उनसे मैं कहना चाहता हूँ कि मुझे यह सुनकर बहुत दुःख हुआ है कि इस शहरमें कुछ बुनकर शराब और जुएके शिकार हैं। मैं चाहता हूँ कि मेरा यह सन्देश आप उन बुनकरोंतक भी पहुँचा दें जो इस समय यहाँ मौजूद नहीं हैं। दरिद्रनारायणकी पेढ़ीमें शराबियों और