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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लगे; लेकिन यदि आप जड़ोंको बचाकर रखेंगे और उसमें प्यारसे पानी देंगे तो वह किसी दिन बढ़कर एक सुन्दर वृक्ष बन जायेगा ।

लेकिन जैसा कि मैंने कहा, वृक्षको नष्ट नहीं किया जा सकता क्योंकि सच्चा ब्राह्मण सभी वार सहकर भी अपनी त्यागमय गरिमामें सीधा तनकर खड़ा रहेगा। मैं स्वीकार करता हूँ कि आज बहुत कम ब्राह्मण, बहुत कम क्षत्रिय, बहुत कम वैश्य और बहुत ही कम शूद्र रह गये हैं। कारण, शूद्रका भी एक निजी व्यक्तित्व होता है। हम सभी आज गुलाम हैं। आज हम डायरकी उद्दण्ड शक्तिके सामने काँपते हैं। आइए, हम सब लोग, हममें से प्रत्येक व्यक्ति, अपने-अपने धन्धेको पूरा करे। हममें से अधिकांश लोगोंको वैश्य होना पड़ेगा क्योंकि ये वैश्य ही हैं जिन्होंने हमें अपनी एड़ीके नीचे दबा रखा है।

हम ब्राह्मणका आदर करेंगे, उसकी श्रेष्ठताके कारण नहीं, बल्कि वह जो अधिक श्रेष्ठ सेवा करता है, उसके कारण । आज हमारा पतन हो चुका है, यही कारण है कि हम श्रेष्ठता और हीनताकी बात ही सोच सकते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ३-११-१९२७

११४. भाषण : तिरुपुरकी सार्वजनिक सभामें

[१]

२३ अक्टूबर, १९२७

मित्रो,

मैं आपको सारे अभिनन्दनपत्रों, इन थैलियों, खादीके विभिन्न उपहारों तथा हीरेके इन दो बुन्दोंके लिए, जिन्होंने मेरा और आपका अगला काम तय कर दिया है, धन्यवाद देता हूँ। अबतक तो आप जान ही चुके होंगे कि मेरे लिए इन मूल्यवान उपहारोंका महत्त्व केवल दरिद्रनारायणकी दृष्टिसे ही है, मेरे व्यक्तिगत उपयोगकी दृष्टिसे नहीं। जिस थोड़ी बहुत खादीकी जरूरत मुझे पड़ती है वह तो मेरे पास पहलेसे ही है। और इसलिए अगर आप भाषणके खत्म होनेपर धैर्य रखेंगे तो मैं सारी खादी और इन मूल्यवान बुन्दों तथा इन फ्रेमोंको बिक्रीके लिए आपके सामने पेश करूँगा । आपने मुझे याद दिलाई है कि कुछ समय पहले जब मैं तिरुपुर आया था तो आपने मुझे खादीके राजाकी तथा इसे [ तिरुपुरको] खादीके राजाकी राजधानीकी उपाधि दी थी। इस उपाधिको मैंने आदरपूर्वक और नम्रताके साथ स्वीकार कर लिया था और इस स्थानको खादीके राजाकी राजधानी कहनेके आपके दावेको भी मैंने मान लिया था और चूंकि मैं अपनी प्रजासे बहुत अपेक्षाएँ रखनेवाला कोई कठोर राजा नहीं हूँ इसलिए मैं कह सकता हूँ कि आपने अपने आपको जो उपाधि दी है वह बिलकुल ठीक दी है। उत्पादनकी दृष्टिसे आपका सारे भारतमें अब भी पहला स्थान है। आपने अपनी खादीकी किस्ममें भी

  1. १. गांधीजीके अंग्रेजी भाषणको चक्रवर्ती राजगोपालाचारी तमिलमें अनुवाद करके सुनाते जाते थे।