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१०८. पत्र : मणिलाल व सुशीला गांधीको

गुरुवार, २० अक्टूबर, १९२७

चि० मणिलाल व सुशीला,
तुम्हारे पत्र मिले ।

तुमने अपने पत्रमें शास्त्रीजीके बारेमें जो राय जाहिर की थी वह मैंने उन्हें बता दी है। मुझे लगा कि वे उसे जान लें यही ठीक होगा। किसीने उनके भाषणोंके छुटपुट उद्धरण उन्हें नीचा दिखानेके इरादेसे यहाँके अखबारोंको भेजे हैं। वे साम्राज्यकी प्रशंसा करें इसमें मुझे कोई अजीब बात नजर नहीं आती क्योंकि उनकी यही मान्यता है। वरना वे यह नौकरी स्वीकार न करते । फिर भी तुम्हारे मनमें जो बात आये उसे तुम विनयपूर्वक उनके सामने रख सकते हो ताकि वे तुमसे कुछ कहना या तुम्हें समझाना चाहें तो समझा सकें। किसी काममें उतावली मत करना ।

देवदासने अर्शका ऑपरेशन कराया है। यह ऑपरेशन त्रिचनापल्लीमें डा० राजन्ने किया है। वह उन्हींके अस्पतालमें है और अब बहुत अच्छा है। थोड़ा-सा जरूम रह गया है जो जल्दी ही भर जायेगा । वह परसों मुझसे मिलेगा ।

आश्रमसे तुम्हें जो माल भेजा गया था उसका पैसा तुम्हारी तरफ निकलता है। वह पैसा तुम तत्काल भिजवा दो। मैंने तुम्हें समझाया भी था कि इन पैसोंकी अदायगी तो रोक कर रखी ही नहीं जा सकती क्योंकि आश्रमको इस तरह उधार देनेका अधिकार ही नहीं है अतः जल्दीसे-जल्दी ये पैसे चुकता कर देना ।

सुशीलाका कितना वजन बढ़ा ? अब वह कितने मील चल सकती है ? उसका कान कैसा है? क्या वह अक्षर जोड़ [ कम्पोज कर ] लेती है ? क्या गीता-पाठ करती है ?

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च : ]

एन्ड्रयूजने तार द्वारा सूचना दी है कि उन्होंने प्रागजीके बारेमें नेटाल तार दिया है ।

तुम्हारा पत्र अभी-अभी मिला। उसमें तुमने किसी डाकसे एक बार पत्र न मिलनेकी बात लिखी है। अबतक वह पत्र तुम्हें मिल गया होगा। बेशक मैं एक डाकसे पत्र भेजना भूल ही गया था ।

गुजराती (जी० एन० ४७२६) की फोटो-नकलसे ।