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मैं हिन्दू क्यों हूँ ?

उपस्थितिसे लाभ उठाता । अपने इस विचारके कारण मैं अमेरिकी मित्रोंको हिन्दू-धर्मके बारेमें बतौर 'बदले' के कुछ 'बता' नहीं सकता। अपने धर्मके बारेमें, विशेष रूपसे धर्मपरिवर्तनके उद्देश्यसे लोग दूसरोंसे कुछ कहें, इसमें मेरा विश्वास नहीं है। विश्वासमें किसीको कुछ बतानेकी गुंजाइश नहीं है। विश्वासपर तो आचरण करना होता है और तब वह अपना प्रचार स्वयं करता है ।

और सिवाय अपने जीवनके और किसी अन्य ढंगसे हिन्दू धर्मकी व्याख्या करनेके योग्य मैं अपनेको नहीं मानता। और अगर मैं लिख कर हिन्दूधर्मको समझा नहीं सकता तो ईसाई धर्मसे उसकी तुलना भी नहीं कर सकूँगा । इसलिए मैं तो सिर्फ इतना ही कर सकता हूँ कि यथासम्भव संक्षेपमें मैं बताऊँ कि मैं हिन्दू क्यों हूँ ।

मैं वंशानुगत गुणोंके प्रभावपर विश्वास रखता हूँ, और मेरा जन्म एक हिन्दू परिवारमें हुआ है इसलिए मैं हिन्दू हूँ। अगर मुझे यह अपने नैतिक बोध या आध्या- त्मिक विकासके विरुद्ध लगे तो मैं इसे छोड़ दूंगा । अध्ययन करनेपर जिन धर्मोको मैं जानता हूँ उनमें मैंने इसे सबसे अधिक सहिष्णु पाया है। इसमें सैद्धान्तिक कट्टरता नहीं है, यह बात मुझे बहुत आकर्षित करती है क्योंकि इस कारण इसके अनुयायीको आत्माभिव्यक्तिका अधिकसे-अधिक अवसर मिलता है। हिन्दूधर्म वर्जनशील नहीं है, अत: इसके अनुयायी न सिर्फ दूसरे धर्मोका आदर कर सकते हैं बल्कि वे सभी धर्मोको अच्छी बातोंको पसन्द कर सकते हैं और अपना सकते हैं । अहिंसा सभी धर्मोमें है मगर हिन्दूधर्ममें इसकी उच्चतम अभिव्यक्ति और प्रयोग हुआ है। (मैं जैन और बौद्ध धर्मोको हिन्दू-धर्मसे अलग नहीं गिनता।) हिन्दू धर्म न सिर्फ सभी मनुष्योंकी एकात्मतामें विश्वास करता है बल्कि सभी जीवधारियोंकी एकात्मतामें विश्वास करता है। मेरी रायमें हिन्दूधर्ममें गायकी पूजा मानवीयताके विकासकी दिशामें उसका एक अनोखा योगदान है। सभी जीवोंकी एकात्मता और इसलिए सभी प्रकारके जीवनकी पवित्रता में इसके विश्वासका यह व्यावहारिक रूप है। भिन्न योनियोंमें जन्म लेनेका महान विश्वास, इसी विश्वासका सीधा नतीजा है । अन्तमें, वर्णाश्रम धर्मके सिद्धान्तकी खोज सत्यकी निरन्तर खोजका अत्यन्त सुन्दर परिणाम है। ऊपर बतलाई बातोंकी परिभाषा देकर मैं इस लेखको भारी नहीं बनाऊँगा । मैं तो यहाँ सिर्फ इतना ही कहूँगा कि गोभक्ति और वर्णाश्रमके आजके खयालात, मेरी समझमें, मूल गोभक्ति और वर्णाश्रमकी विकृतियाँ-भर हैं। जो चाहें, वे 'यंग इंडिया' के पिछले अंकोंमें वर्णाश्रम और गोभक्ति की परिभाषा देख सकते हैं। मैं निकट भविष्यमें ही वर्णाश्रमपर कुछ कहनेकी आशा रखता हूँ। इस अत्यन्त संक्षिप्त खाकेमें तो मैंने सिर्फ हिन्दू धर्मकी वे विशेषताएँ बतलाई हैं जो मुझे हिन्दू बनाये हुए हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २०-१०-१९२७