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१०२. पत्र: रामेश्वरदास पोद्दारको

मुसाफरीमें
आश्विन कृष्ण ८ [१८ अक्टूबर, १९२७ ]

[१]

भाई रामेश्वरदास,

क्या लीखुं ? क्यों मानते हो नरकमें रहते हो? क्यों रहते हो ? समझो कि बगैर रामनाम हमारे पास और कोई चारा नहि है। निश्चय कीया जाय की राम कृपासे हृदयके सब मल दूर हो जायंगे ।

बापूके आशीर्वाद

जी० एन० १८५ की फोटो-नकलसे ।

१०३. मैं हिन्दू क्यों हूँ ?

एक अमेरिकी बहन जो अपनेको हिन्दुस्तानका यावज्जीवन मित्र कहती हैं,लिखती हैं :

चूँकि हिन्दू-धर्म पूर्वके मुख्य धर्मोमें से एक है, और चूंकि आपने ईसाई धर्म और हिन्दू धर्मका अध्ययन किया है, और उस अध्ययनके आधारपर अपने आपको हिन्दू घोषित किया है, मैं आपसे अपनी इस पसन्दगीका कारण पूछनेकी अनुमति चाहती हूँ। हिन्दू और ईसाई दोनों ही मानते हैं कि मनुष्यकी प्रधान आवश्यकता है ईश्वरको जानना, और सच्चे मनसे उसकी पूजा करना । यह मानते हुए कि ईसा परमात्माके प्रतिनिधि थे, अमेरिकाके ईसाइयोंने अपने हजारों पुत्रों और पुत्रियोंको हिन्दुस्तानवालोंको ईसाके बारेमें बतलानेके लिए भेजा है। क्या आप कृपा करके बदलेमें ईसाकी शिक्षाओंके साथ-साथ हिन्दू-धर्म- की तुलना करेंगे और हिन्दू-धर्मकी अपनी व्याख्या देंगे ? इस कृपाके लिए में आपका हार्दिक आभार मानूंगी |

कई मिशनरी सभाओंमें अंग्रेज और अमेरिकी मिशनरियोंसे मैंने यह कहनेका साहस किया है कि अगर वे ईसाके बारेमें हिन्दुस्तानको 'बताने' से बाज आते और ‘सरमन ऑन द माउंट' में बताये गये ढंगसे अपना जीवन बिताते, तो भारत उनपर शक करनेके बदले अपनी सन्तानोंके बीच उनके रहनेकी कद्र करता और उनकी

  1. १. वर्षका निर्धारण पत्रके पाठके आधारपर किया गया है; देखिए खण्ड ३४, १४ २३८ ।