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तार : विठ्ठलभाई झ० पटेलको

लगेंगे। इस खलबलीसे एक-दूसरेके प्रति उदारता रखनेकी शिक्षा तो ले ही लेना । उदारताका पदार्थ-पाठ तभी सीखा जाता है, जब हम किसीको दोषी माननेपर भी उसके प्रति रोष न रखकर उससे प्रेम करें, उसकी सेवा करें। जबतक एक-दूसरेके बीच विचार और आचारकी एकता है, तबतक यदि सद्भाव रहता है तो वह उदारता या प्रेमका गुण नहीं; वह तो केवल मित्रता है। उसे पारस्परिक प्रेम अवश्य कहा जा सकता है।

मगर वहाँ प्रेम शब्दका उपयोग अनुचित मानना चाहिए। उसे स्नेह कहेंगे । दुश्मनके प्रति मित्रभावका नाम प्रेम है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६७१) की फोटो-नकलसे ।

१०१. तार : विट्ठलभाई झ० पटेलको

[१]

[ कोयम्बटूर,
१७ अक्टूबर, १९२७ या उसके पश्चात् ]

विट्ठलभाई पटेल
नडियाद

नवम्बरमें लंकाकी यात्रा निश्चित । स्थगित करना कठिन । यहाँ इक्कीस तक हूँ । उसके बाद तिरुपुर ।[२]

गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० १२८६२) की फोटो-नकलसे ।
  1. १. यह तार १७ अक्टूबर, १९२७ को विट्ठलभाई पटेल द्वारा भेजे गये इस तारके उत्तरमें था : " कृपया अपने कार्यक्रममें ऐसा फेरबदल कर लें कि २ से ८ नवम्बरतक मेरे साथ रह सकें। बहुत आवश्यक है। आपके नाम मेरे पत्रके साथ दयालजी रवाना हो रहे है। "
  2. २. इस तारके उत्तर में विट्ठलभाई पटेलने यह तार भेजा : “ आपको सारी कठिनाइयोंपर विजय पानी होगी और २ नवम्बरको मेरे साथ चलना होगा। इसलिए कृपया अपना कार्यक्रम तदनुसार ठीक कर लीजिए। दयालभाई रवाना हो चुके हैं। " विठ्ठलभाई स्पष्टत: वाइसरायकी ओरसे गांधीजीका मन ले रहे थे। देखिए वाइसरायका विठ्ठलभाई पटेलको १३-१०-१९२७को भेजा गया पत्र । पत्रमें वाइसरायने कहा था : "अब मैं यह कहनेकी स्थिति में हूँ कि मैं श्री गांधी और डा० अन्सारीको दिल्ली आकर मुझसे मिलनेके लिए आमन्त्रित करना चाहूँगा, और में आपका आभारी होऊँगा अगर आप उनसे यह पता लगा लें कि क्या वे ऐसा करनेके लिए मेरे निमन्त्रणको स्वीकार करनेके इच्छुक हैं।" (विठ्ठलभाई पटेल, लाइफ ऐंड टाइम्स, खण्ड २ ) ।