पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/१९०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

९६० पत्र: छगनलाल गांधीको

कोयम्बटूर
सोमवार, १७ अक्टूबर, १९२७

चि० छगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। श्री लॉरेंसका पत्र पढ़ लिया है। उसे वापस भेज रहा हूँ। तुम ठीक काम कर रहे हो । आश्रमसे छुट्टी मिल जाये तो जरूर रुक जाना । तुम्हारा लेख मुझे मिला नहीं । शायद महादेवके पास पड़ा होगा । यह तो तुमने सुना ही होगा कि आश्रममें काफी खलबली मची हुई है। तुम्हें वहाँ बैठकर इसकी चिन्ता नहीं करनी है। मैं यहाँ बैठे-बैठे उसे हल कर रहा हूँ । किन्तु मैं निश्चित हूँ । अन्तमें सब शान्त हो जायेगा । जहाँ जल-प्रपात हो वहाँ पानीकी चक्की आसानीसे चल सकती है। किन्तु कृत्रिम जल-प्रपात तैयार करके उसे चलाना तो बहुत महँगा पड़ जायेगा । मेरी तबीयत ठीक चल रही है। यहाँसे पहली तारीखको निकलूंगा। और लंका १९ वींको छोडूंगा । अतः इस अवधिमें अपने पत्र कोलम्बोके पतेपर लिखना ।

तीन दिन तो समुद्रमें बीतेंगे। प्रभुदास अपनी बीमारीकी अथवा कोई भी दूसरी चिन्ता न करे तो जल्दी अच्छा हो जायेगा । अच्छा होनेके लिए अपनी शक्तिसे ज्यादा चलना-फिरना भी न करे । अल्मोड़ामें जबतक उसकी इच्छा हो तबतक रहे। अपने स्वास्थ्यके विषयमें जबतक निर्भय न हो जाये तबतक वापस न आये, इसमें कोई दोष नहीं है। देवदाससे गलती हो गई है। इसलिए ऐसा नहीं लगता कि अब वह वहाँ या कहीं भी जायेगा। वर्धा जानेका विचार करता है। किन्तु अभी ऑपरेशन...[१] इसलिए खाटपर पड़ा है। खयाल है, उससे २८ बींको तिरुपुरमें भेंट होगी।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ९१८८) से ।
सौजन्य : राधाबह्न चौधरी
 
  1. १. यहाँ वाक्य अधूरा है।