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भाषण : कोयम्बटूरकी सार्वजनिक सभामे

अब मैं कांग्रेसके अभिनन्दनपत्रको लेता हूँ । कांग्रेसके अभिनन्दनपत्रमें मुझसे फिरसे नेतृत्व सम्हालनेको कहा गया है। स्पष्ट ही उनको १९२०के कार्यक्रममें अभी भी कुछ विश्वास बना हुआ है। उन्हें समझ लेना चाहिए कि मैंने नेतृत्व कभी छोड़ा ही नहीं है। मैं अब भी लोगोंको रिझानेकी कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन मुझे अनु- यायी ही न मिलें तो भला मैं क्या करूं? लेकिन मैंने जो उत्तर दिया, उससे एक बेहतर उत्तर है। मैं आपको बताऊँ कि नेतृत्व करनेसे मेरा क्या अभिप्राय है। जेल जानेसे पहले भी मैंने इस आशयके वक्तव्य दिये थे कि अहिंसाके सिद्धान्तमें विश्वास करनेवाले एक व्यक्ति द्वारा देशको जो नेतृत्व दिया जा सकता है वह यही है कि रचनात्मक कार्यक्रमको कार्यरूप दिया जाये। कांग्रेसका सबसे कारगर कार्यक्रम चरखेका सन्देश है, और कांग्रेस द्वारा मुझे प्रदान की गई सहमति और अनुमतिसे मैं अखिल भारतीय चरखा संघके अध्यक्षको हैसियतसे उस रचनात्मक कार्यक्रमका नेतृत्व कर रहा हूँ। और चरखा संघ कांग्रेसकी ही रची हुई एक संस्था है, ऐसी संस्था जो पक्की लगन और सुनियोजित प्रयत्नों द्वारा अपने रचयिताको ही आत्मसात् करनेके लिए काम कर रही है। जिन लोगोंको अपने देशकी स्वतन्त्रता प्राप्त करनेमे अहिंसाकी क्षमता- पर भरोसा है, वे खद्दरमें भरोसा किये बिना और चरखेको इस देशमें सर्वप्रचलित करनेके लिए प्रयत्न किये बिना नहीं रह सकते। जबतक यह उद्देश्य पूर्ण रूपसे सफल न हो जाये तबतक उन्हें अन्य किसी सिद्धान्त या विश्वासकी बात नहीं करनी चाहिए। यदि कोई मुझे नेतृत्व करनेको कहे, और मैं जो नेतृत्व वास्तवमें दे रहा हूँ, उसकी उपेक्षा करे तो फिर मेरे लिए यह बात शंकास्पद हो जाती है कि प्रश्न- कर्त्ताने हमारे संघर्ष या अहिंसाके फलितार्थीको समझा भी है या नहीं। याद रखिए कि चरखा संघ, जिसका उद्देश्य ३० करोड़ लोगोंकी, जिनमें गरीबसे-गरीब लोग शामिल हैं, सेवा करना है, सर्वोत्तम प्रशासकीय कौशलकी और व्यापकतम मंचकी माँग और अपेक्षा करता है। याद रखिए कि अपनी सफलताके लिए वह कार्यकर्ताओंसे अनवरत जागरूकता, अनवरत लगनकी अपेक्षा रखता है और उपहास, विरोध और दुष्टतापूर्ण गलत वयानियोंके मुकाबले अदम्य आस्थाकी भी। यह कार्यकर्ताओंसे निरन्तर अतुलनीय त्याग करते जानेकी अपेक्षा रखता है ऐसा त्याग, जिसमें कोई सनसनी या उत्तेजना भी नहीं है। और ईश्वरकी कृपासे यदि भारत ऐसा संगठन चला सके और इसे देशके कोने-कोने में बसे गाँवोंतक फैला सके तो हम सोच सकते हैं कि यह एक काम पूरा कर देनेके बाद इस देशकी स्वतंत्रताके लिए हमें कितना थोड़ा करनेको शेष रह जायेगा । इस प्रयत्नके प्रति भारत अनुकूल प्रतिक्रिया कर सकता है, इस बातमें मेरा विश्वास बराबर बढ़ रहा है; और आप असहयोग, वर्णाश्रम धर्म और अन्य अनेक चीजोंके बारेमें, जिनमें मैं दखल देता रहा हूँ, मेरे विचारोंसे सहमत हों या न हों, मैं आप सबसे दरिद्रनारायणके लिए काम करनेको कहता हूँ ।

और अन्तमें मैं हमारी अभागी बहनों, देवदासियोंके सवालको लेता हूँ। लेकिन इसकी चर्चा अन्तमें कर रहा हूँ, इसलिए इस सवालके महत्त्वको किसी तरह कम नहीं समझना चाहिए। मैं समझता हूँ कि वे आपके बीच भी होती हैं। उनमें से कुछ