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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अब मैं आदि-द्रविड़ोंके अभिनन्दनपत्रको लेता हूँ। त्रावणकोरमें प्रवेश करनेके वादसे ही यह सवाल किसी-न-किसी रूपमें मेरा ध्यान आकृष्ट करता रहा है। आदि- द्रविड़ मित्रोंको मैं यह आश्वासन देना चाहता हूँ कि मेरा सारा ध्यान इस समस्याको हल करनेमें लगा हुआ है। इधर हालमें मैं अपना परिचय नायडी कहकर देने में सुख प्राप्त करता रहा हूँ और मुझे इस बातका खेद है कि मैं श्री षण्मुखम् चेट्टियारके महलनुमा मकानमें उनका आतिथ्य अस्वीकार करके सीधा नायडी लोगोंके पास जाने और उनका आतिथ्य स्वीकार करके उनके बीच रहनेका साहस नहीं कर सका। लेकिन मैं आदि-द्रविड़ मित्रोंको यह आश्वासन देना चाहता हूँ कि अस्पृश्यताका यह अभिशाप तेजीसे समाप्त हो रहा है। यह सच है कि मन्दिरोंके दरवाजे उनके प्रवेशके लिए अभी खोले नहीं गये हैं। यह भी सच है कि अभी भी कुछ मार्गोंपर चलनेका उनको निषेध है। यह भी बिलकुल सच है कि अस्पृश्यता और अदर्शनीयता, ये दोनों ही अपने अत्यन्त घृणित रूपमें अभी मौजूद हैं। लेकिन मैं यह भी जानता कि लोकमत दिनोंदिन इस असह्य बुराईके विरुद्ध जोर पकड़ता जा रहा है, और यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि यह बुराई हिन्दू-धर्मसे इतनी जल्दी समाप्त होनेवाली है जिसकी कि हममें से कोई कल्पना नहीं कर सकता।

तथापि आदि-द्रविड़ोंके इस अभिनन्दनपत्रमें एक मार्मिक अनुच्छेद है, और यह अनुच्छेद इतना महत्त्वपूर्ण है कि मैं उसे आपके सामने पढ़कर सुनाना चाहूँगा ।

सरकार हमारी जातिके निवास-क्षेत्रोंमें या उनके निकट शराबकी दुकाने स्थापित करके हमारे नौजवानोंको शराब पीनेका प्रलोभन देती है। यदि इस प्रकारकी दुकानोंकी जगह औद्योगिक संस्थान खोल दिये जायें और यदि आब-कारीके ठेकेदारोंकी जगह सामाजिक कार्यकर्त्ता हमसे मंत्रोका हाथ बढ़ायें तो हमें कोई सन्देह नहीं है कि बहुत थोड़े ही समयमें हम प्रगति के पथपर बढ़ चलेंगे। इसलिए हम आपसे पूरे दिलसे अपील करते हैं कि हमारी जातिको विनाशसे बचाने के लिए हमारे मुहल्लोंमें या उनके आसपास औद्योगिक स्कूलोंकी स्थापनामें आप हमारी मदद करें।

यह अनुच्छेद हमें सोचनेके लिए बहुत मसाला उपलब्ध कराता है। मैंने आज तीसरे पहर जो कहा उसे दुहराते हुए मैं कहूँगा कि कितने ही सदस्योंकी ठोस कोशि शोंके बावजूद सरकार नगरपालिकाका यह सुझाव अस्वीकार नहीं कर रही है कि नगरपालिकाकी सीमामें स्थित कुछ शराबकी दुकानोंको बन्द कर दिया जाये। मेरे लिए यह अत्यन्त दुखद बात है कि ऐसे सीधे-सादे प्रस्तावको सरकारने रद कर दिया। मैंने आदि द्रविड़ोंकी ओरसे जो अनुच्छेद अभी आपको पढ़कर सुनाया उसकी भावनाके साथ मैं पूरी तरह सहमत हूँ, और मैं चाहूँगा कि आप लोग, कोयम्बटूरके नागरिकगण, उन लोगोंकी तरफसे इस लड़ाईमें शरीक हों जो शराबके आदी हैं, और अपने नगरको शराबखोरीके अभिशापसे मुक्त करें। मैं यह भी चाहूँगा कि कुछ नौजवान पुरुष और स्त्रियाँ आदि- द्रविड़ मित्रोंकी चुनौती स्वीकार करके स्वयंसेवकके रूपमें निकलें और आदि-द्रविड़ोके लिए औद्योगिक स्कूल खोलें ताकि उन्हें शराबकी ओर प्रवृत्त होने से बचाया जा सके ।