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भाषण : कोयम्बटूरकी सार्वजनिक समामें

पुन: घोषित करता हूँ कि वर्णाश्रम-धर्म न केवल एक भयंकर बुराई नहीं है, बल्कि यह उन आधारशिलाओंमेंसे एक है, जिसपर हिन्दूधर्म खड़ा हुआ है। मेरी नम्र रायमें अभिनन्दनपत्रके रचयिताओंने छायाको ही सत्य मान बैठनेकी गलती की है। यदि उन्होंने, जैसा कि मैं नम्रतापूर्वक मानता हूँ, यह गम्भीर गलती करनेके बदले मुझे वर्णाश्रम-धर्मके नामपर चलनेवाली बुराईके विरुद्ध अभियान करनेके लिए अपने साथ निमन्त्रित किया होता तो वे मुझे अपने झंडेके नीचे एक स्वयंसेवकके रूपमें भर्ती करा पाते। मैं वर्णाश्रमको हमारे अस्तित्वका एक नियम मानता हूँ, और हम अपने अस्तित्वके ऐसे नियमोंके बारेमें जानते हों या न जानते हों, हमें उन्हें मानना पड़ता है, उसी प्रकार जिस प्रकार गुरुत्वाकर्षणके सिद्धान्तका एक महान वैज्ञानिक द्वारा पता चलानेसे पहले भी हमारे पूर्वजोंको उस नियमका पालन करना पड़ता था। प्रकृतिके नियम कठोर हैं। उनका उल्लंघन करके हम दण्डसे नहीं बच सकते। मेरे मनमें यह विश्वास दिनोंदिन जमता जा रहा है कि वर्णाश्रम धर्मके नियमके उल्लंघनके कारण ही हमारा भारतदेश और शेष संसार दुःख भोग रहा है। यदि आज हिन्दू धर्म गिरी हुई दशामें दिखाई पड़ता है तो इसका कारण वर्णाश्रम धर्म नहीं है, बल्कि उस धर्मका मनमाना उल्लंघन ही है। वर्णाश्रम-धर्म इस धरतीपर मनुष्यका उद्देश्य निर्धारित करता है। धन संग्रह करनेके नये-नये तरीकोंको खोजनेके लिए, जीवन-यापनके विभिन्न साधनोंकी खोज करनेके लिए मनुष्यका जन्म नहीं होता; इसके विपरीत मनुष्यका जन्म इसलिए होता है कि वह अपनी शक्तिका प्रत्येक अणु अपने रचयिताको जाननेमें लगा दे। इसलिए यह धर्म जीवन निर्वाहके लिए मनुष्यपर अपने पूर्वजोंका धन्धा अपनानेकी बन्दिश लगाता है। यही वर्णाश्रम धर्म है। वर्णाश्रम धर्म है - इससे न कम, न ज्यादा- -- और मेरे लिए इस धर्मकी उपेक्षा करना केवल इस कारण ही सम्भव या वांछनीय या आवश्यक नहीं है कि अधिकांश हिन्दू अपने जीवनमें इस धर्मसे इनकार करते जान पड़ते हैं। इस तरह देखें तो वर्णाश्रम-धर्म और उस जाति-प्रथामें कोई समानता नहीं है जो आज प्रचलित है। इसलिए वर्णाश्रम धर्मका अर्थ अस्पृश्यता कभी नहीं हो सकता और न उसने अस्पृश्यताको कभी बर्दाश्त किया है। उस धर्ममें श्रेष्ठता या हीनताका कोई विचार नहीं है। चूंकि बहुत से लोग -- करोड़ों लोग ईश्वरका नाम झूठ-मूठ ही लेते हैं और स्वयं उसके नामपर उसका और मनुष्यका अपमान करते हैं, इसीलिए क्या हम अपने ईश्वरको त्याग देंगे और उसके लिए कोई दूसरा नाम रखेंगे? इसलिए मैं इस अभिनन्दनपत्रके लेखकों तथा आप सबको आदरपूर्वक जातियोंके जंजाल और अस्पृश्यताके अभिशापके विरुद्ध जिहाद करनेके लिए आमन्त्रित करता हूँ और आपसे वादा करता हूँ कि यदि आप मेरे साथ इस जिहादमें शामिल होंगे तो उस लड़ाईके अन्तमें आप पायेंगे कि हिन्दू धर्ममें कोई ऐसी बुराई नहीं बची है जिसके विरुद्ध लड़ाई की जाये। मैं प्रार्थनापूर्ण मनसे अब्राह्मण-ब्राह्मणके इस बड़े सवालका अध्ययन करता रहा हूँ, जो दक्षिणके बहुत सारे सुयोग्य व्यक्तियोंको परेशान करता रहा है, और मैं प्रतिदिन इसी निष्कर्षपर पहुँच रहा हूँ कि यह सवाल, जहाँतक यह अब्राह्मणोंका सवाल है, अस्पृश्यताके विरुद्ध लड़ाईका ही एक पहलू है।