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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

की गई थी। असहयोगके जन्मके बादसे कई महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुई हैं, जिनमें से कुछ बहुत कष्टदायक हैं। १९२१ में मैंने देशको जो सलाह दी उसके ऊपर मैंने दो वर्षतक प्रार्थनापूर्ण मनसे चिन्तन-मनन किया था। असहयोगके विरुद्ध जो कुछ भी लिखा गया है, लगभग वह सभी-कुछ मैंने बहुत ध्यानपूर्वक और खुले दिमागसे पढ़ा है। और इस अध्ययनके परिणामस्वरूप मैं आपको आज सूचित करनेकी स्थितिमें हूँ कि १९२१ में मेरे जो विचार थे, और जिन्हें मैंने पिछली बार भेंट होनेपर आपके सामने व्यक्त किया था, न केवल मैंने उन विचारोंको नहीं बदला है, बल्कि उलटे मेरे वे विचार दृढ़से-दृढ़तर हुए हैं। मेरी यह नम्र राय है कि पिछली दो पीढ़ियोंमें भी देशको उतना लाभ नहीं हुआ है जितना लाभ उसे अहिंसक असहयोगका उद्भव होनेके बादसे हुआ है। अहिंसक असहयोगके विषयमें इतिहास क्या निर्णय देगा, इसके बारेमें मेरे मनमें कोई शंका नहीं है। मेरा यह भी निश्चित मत है कि उस हर छात्रने, जिसने स्कूल या कालेज छोड़ दिया या उस हर सरकारी नौकरने, जिसने वह नौकरी छोड़ दी जिसे गलतीसे सार्वजनिक सेवा कहते हैं, इस प्रकारके त्यागसे बहुत लाभ उठाया है और वैसा करके कुछ खोया नहीं है। और यह बात कि असहयोग आन्दोलनके बावजूद सभी लोगोंने सरकारी नौकरियाँ नहीं छोड़ दीं, और हमारे सभी लड़कोंने सरकारी स्कूलोंको त्याग नहीं दिया, मेरे सिद्धान्तकी विफलताका द्योतक नहीं है। सभी स्त्री-पुरुष तो सत्यनिष्ठ नहीं होते; किन्तु क्या इसीसे सत्यकी प्रभावकारिता या अच्छाईपर सन्देह नहीं किया जा सकता ? मैं एक कदम और आगे बढ़कर आपसे कहता हूँ कि जो भी व्यक्ति वर्तमान घटनाओंका ध्यानपूर्वक और निष्पक्षभावसे अध्ययन करेगा उसे इस बातके पर्याप्त प्रमाण मिलेंगे कि बहुत से सरकारी नौकर, जिन्होंने अपनी नौकरियाँ छोड़ दीं और बहुत-से छात्र जिन्होंने स्कूल छोड़ दिया था, आज अपनी योग्यताका बहुत अच्छा परिचय दे रहे हैं।

यह क्या छोटी बात है कि असहयोगके प्रभाव में आकर एक दिन सहसा करोड़ों लोग मिलकर एक आदमीकी तरह उठ खड़े हुए, जैसे कोई जादू हो गया हो ? यदि सहयोग कर्त्तव्य है तो मैं मानता हूँ कि किन्हीं परिस्थितियोंमें असहयोग भी उसी प्रकार कर्त्तव्य है। मैं और आगे जाकर कहता हूँ कि यदि हमारे इस देशको अहिंसात्मक साधनोंसे स्वराज्य प्राप्त करना है तो एक-न-एक दिन असहयोग करनेके सिवा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। आप विश्वास करें कि यदि मैं आज अहिंसक असहयोगकी बात नहीं करता तो इसका कारण यह नहीं है कि उसमें मेरा विश्वास उतना ही प्रखर नहीं है जितना पहले था, बल्कि यह है कि एक व्यावहारिक मनुष्यके नाते आज मैं उस सिद्धान्तको कार्यरूप देनेके लिए अनुकूल वातावरण नहीं देखता। मगर मुझे अपने विश्वासके बारेमें दलीलें देकर आपको उबाना नहीं चाहिए।

नगरपालिकाके मौजूदा अभिनन्दनपत्रमें मेरे वर्णाश्रम धर्म सम्बन्धी उन विचारोंके विरुद्ध शिष्ट किन्तु दृढ़ शब्दोंमें विरोध प्रकट किया गया है, जिन्हें मैं इघर व्यक्त करता रहा हूँ। मुझे लगता है कि इस अभिनन्दनपत्रके रचयिताओं या हस्ताक्षरकर्त्ताओं- की दृष्टिमें वर्णाश्रम धर्म एक भयंकर बुराई है। मैं साहसपूर्वक अपना यह विश्वास