विश्वास करते हों तो एक कांग्रेसीके नाते, जिससे कांग्रेसके सिद्धान्तों और कांग्रेसके संकल्पोंका थोड़ा-बहुत ज्ञान रखनेकी अपेक्षा की जाती है, मैं आपको सूचित करता हूँ कि इन कांग्रेसियोंको अपनी सदस्यतासे इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्हें मालूम होना चाहिए कि नये संविधानके अन्तर्गत गठित पहली कांग्रेसने जो स्वराज्य प्रस्ताव स्वीकार किया है, अस्पृश्यता निवारण उसका अभिन्न अंग है। मेरी रायमें वह प्रस्ताव उतना ही पवित्र है, जितने कि कांग्रेसके सिद्धान्त । यदि हम राष्ट्रके प्रति सच्चे हैं, कांग्रेसके प्रति सच्चे हैं और अपने प्रति सच्चे हैं तो वैसी दशामें यदि हम अस्पृश्यता- निवारणमें विश्वास नहीं करते तो हमारे लिए यह रास्ता खुला हुआ है कि हम कांग्रेस- के सिद्धान्तोंको, उसके उस प्रस्तावको चुनौती दें या उस प्रस्तावको हटानेकी माँग करें। आप अस्पृश्यता-सम्बन्धी उस प्रस्तावकी स्वीकृतिमें सहभागी रहते हुए भी यदि अस्पृश्यतामें विश्वास करते हैं तो आप सच्चे नहीं है। लेकिन मैंने तो आपके सामने एक चीजका कष्टदायक और दुनियवी पहलू ही रखा है, जिसके साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। आप कांग्रेसी हैं या गैर-कांग्रेसी, उससे क्या फर्क पड़ता है ? क्या यह आपका -- आप हिन्दुओंका यह कर्तव्य नहीं है कि इस बड़े सवालपर उचित विचार करें और धार्मिक महत्त्वकी दृष्टिसे उसकी जाँच करें ? मैं तो इस बुराईको दूर करनेको हिन्दू धर्मकी अग्निपरीक्षा मानता हूँ। मेरी नम्र रायमें ब्राह्मण-अब्राह्मण प्रश्न, हिन्दू-मुसलमानका सवाल और हमारे सामने जो अन्य कई प्रश्न मौजूद हैं, और जिनसे हम आज ग्रस्त हैं, सब इसी अस्पृश्यताके सवालके विभिन्न पहलू हैं।
यदि हम लोग, जिन्हें ईश्वरने बुद्धि दी है और ऐसी सौभाग्यशाली स्थिति में रखा है, केवल इतना समझ लें कि हम हीनसे-हीन और गरीबसे-गरीब देशवासीके सेवक-मात्र हैं तो ये जो प्रश्न उठ खड़े हुए हैं, सब एक क्षणमें समाप्त हो जायेंगे । इस देशमें और सारे संसारमें जन साधारणके बीच जो जागृति आ गई है उसके सामने अहंकार, दर्प और श्रेष्ठताके दावे एक क्षण भी नहीं ठहर सकते ।
मैंने अपने अन्दर इस प्रश्नपर न जाने कितना तर्क-वितर्क किया है कि जिन अन्यायोंसे हमारे ये भाई पीड़ित हैं, क्या उनका कोई औचित्य है। और मैं आपसे सच कहता हूँ कि मुझे एक सी औचित्य ढूंढ़े नहीं मिला है। लेकिन अब मैं आपका और अधिक समय नहीं लूंगा। मैं ईश्वरसे यही प्रार्थना करूँगा कि वह आपकी समझ- की आँखें खोले, आपके अन्तःकरणको जागृत करे और आपको शक्ति दे कि आप इन लोगोंके बीच जायें और समस्याके जिस समाधान और राहतके वे अधिकारी हैं वह उन्हें दें।
आपने जिस धीरजके साथ मेरी बातें सुनी हैं, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ ।
हिन्दू, १८-१०-१९२७