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भाषण : पालघाटकी सार्वजनिक सभामें

दे तो हम उसे छुयेंगे भी नहीं, बल्कि घृणा और भयसे पीछे हट जायेंगे । हमारी माँ सुन्दर मानी जाये या न मानी जाये, हम उसके पैरोंपर गिरते हैं। मैं समझता कि हममें से प्रत्येकके लिए उसकी माँसे सुन्दर कोई स्त्री नहीं होगी। सौन्दर्य तो उस वस्तुके साथ जुड़ी भावना और स्मृतियोंका होता है । सभाके अन्तमें मैं इस कपड़ेको आपके सामने के लिए रखकर आपके सौन्दर्य-बोधकी परीक्षा लूंगा। आपमें से कुछ लोगोंने अखबारोंमें देखा होगा कि चेट्टिनाडमें मुझे खादीके एक छोटे-से टुकड़ेके लिए, जो वास्तवमें इस मोटी खादीसे बहुत अधिक बारीक था, १००० रुपये मिले थे, क्योंकि वह खादी वहींके एक आत्म-त्यागी कलाकारने तैयार की थी और उसे बुना भी गया था वहीं देवकोट्टामें।

पालघाटमें चलाये जा रहे विश्वभारती वाचनालयसे मुझे एक थैली मिली है और मुझसे प्रस्ताव किया गया है कि मैं एक खद्दर भंडारका भी औपचारिक रूपसे उद्घाटन करूँ, जिसे वाचनालयसे सम्बन्धित लोग मुझसे खुलवाना चाहते हैं। मैं इसका उद्घाटन सहर्ष करता हूँ और आशा करता हूँ कि इसे आपसे हर तरहका योग्य प्रोत्साहन प्राप्त होगा। मुझे इस खादी भंडारसे भी कुछ खादी प्राप्त हुई है, यदि आप सभाके अन्तमें भी इसी प्रकार शान्ति बनाये रखेंगे, तो आप उसे खरीद सकेंगे । खादीके बारेमें कुछ भी कहना मुझे प्रिय लगता है, लेकिन मुझे अब उस विषयपर आना चाहिए, जो केरलके दौरेमें मेरे दिमागमें बराबर रहा है।

मेरा अभिप्राय अस्पृश्यतासे है जो यहाँ अपने उग्रतम रूपमें प्रचलित है। यहाँ कुछ लोगोंको पासतक नहीं फकटने दिया जाता, कुछकी छाया लगनेमें भी छूत मानी जाती है। जब भी मैं केरल आया हूँ, मेरे लिए सदैव यह दुखकी बात रही है कि एक इतने सुन्दर प्रदेशमें, जो सौन्दर्यकी दृष्टिसे भारतमें लगभग बेजोड़ है, यह अस्पृ- श्यता अपने जघन्यतम रूपमें मौजूद है। एजवाहा और चेरूमा जातियोंके मित्रोंके शिष्ट- मंडलोंके साथ मेरी एक लम्बी और गम्भीर बातचीत हुई थी। इन जटिल जाति- भेदोंके बारेमें न जाननेका मुझे कोई दुःख नहीं है। मेरे लिए इतना ही जानना काफी है कि यह हजार सिरवाला दैत्य है। यहाँ अस्पृश्यतामें जो अनेक वर्ग-भेद प्रचलित हैं, उनके बारेमें समझना मुझे तनिक भी सुखकर नहीं लगता, इसका मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ। जब मैं विभिन्न प्रकारकी अस्पृश्यताके बारेमें सुनता हूँ तो मैं अत्यन्त अपमानित और लज्जित हो जाता हूँ। और मेरे इस दुखको बढ़ानेवाली एक ऐसी चीज आज मैंने अपनी आँखों देखी है, जिसे मैं आसानीसे नहीं मूल सकूँगा ।

जैसे ही मैं पालघाट पहुँचा, मुझे उस मकानके पड़ोसमें एक चीखकी आवाज सुनाई पड़ी, जहाँ मुझे ठहराया गया है। अपने अज्ञानमें मैंने सोचा कि चूंकि यह एक उद्योग व्यवसायका केन्द्र है, इसलिए ये किसी कारखानेके मजदूर होंगे, जो भारी बोझ- को ढोते समय जोर लगानेके लिए चिल्ला रहे हैं। अहमदाबाद और बम्बईमें मुझे बराबर ऐसा देखनेको मिलता है। मेरे पालघाट पहुँचनेके एक घंटेके अन्दर ही श्री च० राजगोपालाचारी मेरे पास आये और पूछा कि क्या मैं कुछ अजीब तरहकी आवाजें सुन रहा हूँ। मैंने कहा कि हाँ सुन रहा हूँ। और उन्होंने सीधे पूछा कि