ईसाई और इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया है। लेकिन हिन्दू-धर्मसे इस प्रकारके धर्म- परिवर्तनपर आर्य-समाजके प्रयत्नोंसे एक रोक लग गई है। आर्य-समाजने मद्रास उच्च न्यायालयसे यह आदेश प्राप्त कर लिया है कि म्युनिसिपैलिटीके अधिकारक्षेत्र में आनेवाली सार्वजनिक सड़कोंपर जनताके हर व्यक्तिका समान अधिकार है और एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदायको सार्वजनिक सड़कोंका वैध उपयोग करने से रोक नहीं सकता ।
महात्माजीने कहा कि यह समस्या केरलमें सब जगह मौजूद है और इसके लिए जन-जागृति जरूरी है।
श्री सी० पी० गोपालनने महात्माजोसे यह जानने की इच्छा व्यक्त की कि जब सभी धर्म एक समान हैं तो क्या एजवाहा लोग अपने प्रति होनेवाले अन्यायका निराकरण करने के लिए दूसरे धर्मोको अंगीकार कर सकते हैं ।
महात्माजीने कहा कि उन्हें हिन्दू धर्म नहीं छोड़ना चाहिए वल्कि समुचित शक्तिके साथ अपने उद्देश्यके लिए लड़ना चाहिए। यदि वे केवल हिन्दू-धर्मकी उपयोगिताको समझ लें तो उसके मुकाबले तथाकथित ऊँची जाति द्वारा किये जानेवाले अत्याचार कुछ भी नहीं ठहरते ।
श्री चमियप्पनने महात्माजोको बताया कि कुछेकको छोड़कर अधिकांश एजवाहा दूसरे धर्मोको स्वीकार नहीं करना चाहते। लेकिन उनकी जमीनोंपर ऊँची जातिके लोगोंका स्वामित्व है, इसी वजहसे वे उनके साथ लड़नसे डरते हैं ।
महात्माजीने कहा कि यदि वे सब एक हो जाये तथा अनुशासन और साहस रखें तो वे सामाजिक स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकते हैं ।
श्री चमियप्पनने महात्माजीको इस बातका ध्यान दिलाया कि इस लड़ाई में स्वयं कांग्रेसी लोग ही उनका साथ नहीं दे रहे हैं, आम जनताकी तो बात ही क्या है...।
महात्माजीने कहा कि इस सम्बन्धमे से कांग्रेसियोंसे जरूर बात करूंगा, लेकिन वे मेरी सलाह मानेंगे या नहीं, यह मैं नहीं कह सकता। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग तो नाम मात्रके कांग्रेसी हैं।
श्री शेषय्याने बताया कि . . . चेरूमाओंका ध्येय मन्दिर प्रवेश नहीं है बल्कि सार्वजनिक सड़कोंका उपयोग करना-भर है।
महात्माजी : मन्दिर प्रवेश भी क्यों न हो ? सारे मलाबार-भरमें यह एक पेचीदा समस्या है ।
श्री पी० सी० गोपालनने पूछा कि क्या एजवाहा लोग हिंसाका प्रयोग करके - जिसके अर्थ हैं मारपीटके बदले मारपीट - जबरदस्त लड़ाई लड़ सकते हैं।
महात्माजीने हिंसाका विरोध किया। उन्होंने कहा, जहाँतक मेरा सवाल है, में न्यायालय में शिकायत भी दायर नहीं करूंगा, लेकिन यदि एजवाहा चाहें तो वे