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भाषण : त्रिचूरमें

गये कारण मनको वैसा संकल्प लेनेके लिए कायल करनेवाले हैं। मैं आप सबसे इस नाजुक प्रश्नका गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करनेकी सिफारिश करता हूँ ।

और अब मैं छात्र-छात्राओंके सम्बन्धमें कुछ कहूँगा । आज तीसरे पहर उनसे मुझे अभिनन्दनपत्र प्राप्त हुआ था और उनसे मिलनेका भी अवसर प्राप्त हुआ था । मेरे लिए यह अत्यन्त हर्ष और सन्तोषकी बात रही है कि मुझे इस देशमें सर्वत्र हजारों छात्रोंका विश्वास प्राप्त है और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं हम सबके रचयिता प्रभुसे प्रतिदिन हृदयसे प्रार्थना करता रहता हूँ कि वह मुझे इस विश्वासके योग्य बनाये । मेरी कामना थी कि मेरे पास इतना काफी समय होता कि मैं इस सभामें उपस्थित लड़के-लड़कियोंके समक्ष अपना हृदय खोलकर रख सकता । मैं जानता हूँ कि शायद मैं आपको इस जीवनमें फिर कभी न देखूं, लेकिन मेरा हृदय सदा आपके साथ है।

मुझे हमेशा लगा है कि हमारी शिक्षा कई अर्थोंमें दोषपूर्ण और अधूरी है। आपने अपने अभिनन्दनपत्रमें खुद मी यही राय व्यक्तकी है और आपने यह आदर्श आशा भी प्रकट की है कि आपके बीच मेरे आ जानेसे शिक्षाके मामलेमें सब कुछ ठीक- ठाक हो जायेगा। कितना अच्छा होता कि ऐसी आशाका कोई ठोस आधार होता । शिक्षाकी योजनामें परिवर्तन बहुत महत्त्वपूर्ण और जरूरी है और समस्त देशमें यह एक बहुत बड़ी समस्या है। मैंने अकसर इस बारेमें लिखा है और परिपक्व आयुके कुछ छात्र शायद मेरे विचारोंसे अवगत भी हों। मैं मानता हूँ कि मेरे विचारोंमें तनिक भी परिवर्तन नहीं हुआ है और समयके साथ मेरे विश्वासकी तीव्रता बढ़ी है। लेकिन वह उपाय तो ऐसा है जिसकी इस समय मैं आपसे चर्चा करनेका साहस भी नहीं कर सकता। यह देशके शिक्षा-शास्त्रियोंपर निर्भर करता है और उससे भी ज्यादा, वास्तव में बहुत सारी परिस्थितियोंपर निर्भर करता है जिनपर शिक्षा-शास्त्रियोंका भी वश नहीं है। अतः लड़कों और लड़कियोंसे बोलनेके लिए मैंने एक ऐसा तरीका अपनाया है जिससे वर्तमान पाठ्यक्रममें तनिक भी हेरफेर किये बिना वे आसानीसे अपना सकते हैं। सही या गलत, सभी शिक्षा-शास्त्रियोंका यह दावा है कि शिक्षाको धर्मनिरपेक्ष होना चाहिये ।

व्यक्तिगत रूपसे मैं इस विचारसे सदा और सर्वथा असहमत रहा हूँ, लेकिन जैसी कि स्थिति है, उसमें भी छात्रोंके लिए किसी-न-किसी अवस्थामें कुछ धार्मिक शिक्षा प्राप्त करना कुछ धार्मिक सांत्वना प्राप्त करना जरूरी है। दुर्भाग्यवश जो माता-पिता अपने लड़कोंको इन स्कूलोंमें भेजते हैं, उनके घर लगभग उखड़ चुके हैं। उनमें अपने लड़के और लड़कियोंको यह आवश्यक शिक्षा देनेकी न तो योग्यता है और न इच्छा ही रही है। वह धार्मिक और नैतिक वातावरण जो हम मानते हैं कि एक समय भारतके प्रत्येक घर और प्रत्येक पुरवेमें मौजूद था, आज बिलकुल ही नहीं रहा, लेकिन ईश्वरका धन्यवाद है कि छात्रोंको निराशा महसूस करनेकी जरूरत नहीं रहा है। अगर आपके अन्दर धार्मिक और नैतिक प्रवृत्ति है, जैसा कि हममेंसे हरएकके अन्दर होनी चाहिए, तो हमारे लिए अपने-आपको आवश्यक प्रशिक्षण दे सकना सम्भव है।