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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि मुझे यह देखकर गहरा दुख क्यों होता है कि कुछ विशेष अवसरोंपर जब ये लोग सार्वजनिक मार्गोंपर से गुजरते हैं तो इन्हें धक्का देकर हटा दिया जाता है, और जो स्कूल मन्दिरोंके अहातोंमें स्थित हैं उनमें इस वर्गके बच्चे नहीं जा सकते । हमारे मन्दिरोंमें इन स्त्री-पुरुषोंके प्रवेशपर लगी निषेधाज्ञाको स्वीकार कर सकना मेरे लिए असम्भव है। मेरे लिए ऐसी जगह रहनेके योग्य नहीं है जहाँ मनुष्य यह सोचनेकी धृष्टता करता हो कि अपने ही रचे हुए प्राणियोंके निकट आनेसे स्वयं ईश्वर अपवित्र हो जाता है। वह मन्दिर जहाँ किसी भी मनुष्यको किसी जाति विशेषमें जन्म लेनेके कारण न जाने दिया जाता हो, मेरे लिए मन्दिर नहीं रह जाता। इसलिए में पूरे दिलसे और पूरे जोरके साथ आपमें से प्रत्येक व्यक्तिसे अपील करता हूँ कि हम जनताके प्रति अपने कर्त्तव्यको साहसके साथ निभायें ।

एक बुराई और है जो समाजको भ्रष्ट कर रही है। मेरे पास देवदासी प्रथाके सम्बन्धमें एक छपा हुआ खुला पत्र है, जिसपर हस्ताक्षर करनेवाले मित्रोंके नाम मैं जानता नहीं और कुछके नाम तो मुझसे पढ़े मी नहीं जा सके। इस पत्रके साथ संलग्न एक प्रतिवेदन है, जो महाराजा साहबके नाम है। इस प्रतिवेदनको पढ़कर कष्ट होता है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार आरम्भमें कुछ देवदासियाँ राज्यमें लाई गई थीं और किस प्रकार अब यहाँ भी देवदासियोंकी प्रथा हो गई है, जो दिन-दिन फैलती ही चली जा रही है। मैं नहीं जानता कि प्रतिवेदनमें कही गई बातें किस हदतक सिद्धकी जा सकती हैं, लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि यह एक सुविचारित और युक्तियुक्त प्रतिवेदन है, जिसे जिम्मेदार लोगोंने लिखा है, पढ़नेपर इसमें लिखी बातें विश्वसनीय प्रतीत होती हैं। प्रतिवेदनमें कहा गया है कि देवदासियोंसे पैदा होनेवाली लड़कियाँ, और जिन्हें देवदासियाँ अन्य वर्गोंसे गोद ले लेती हैं, वे लड़कियाँ वास्तवमें ईश्वरके नामपर ऐसे भयंकर कार्यके लिए प्रयुक्त होती हैं, जिनकी कल्पना नहीं की जा सकती। प्रतिवेदनमें लोगोंके एक पूरे वर्गका उल्लेख किया गया है, जो इन कच्ची उम्र- की लड़कियोंका अवैध उद्देश्योंके लिए उपयोग करके स्वयं अपने-आपको और भारतको कलंकित करते हैं। मैं नहीं जानता कि प्रतिवेदनमें कही गई बातोंका खण्डन करना आपके लिए किस हदतक सम्भव है। लेकिन यह आप लोगोंको, जो इस राज्यमें लोक- मतके नेता हैं और जो इस राज्यमें लोकमतको प्रभावित कर सकनेमें सक्षम हैं, चाहिए कि इस प्रतिवेदनको ध्यानसे पढ़ें। आप देखेंगे कि इस प्रतिवेदनमें की गई शिकायतोंके लिए काफी ठोस आधार है। आपको इस समस्यासे गम्भीरतापूर्वक निपटनेका प्रयत्न करना चाहिए। मैसूर सरकारने १९०९ में अपने राज्यमें मौजूद इस बहुत बड़ी बुराई- से निपटनेके लिए जो संकल्प किया था, उसका इस प्रतिवेदनमें कृतज्ञ-भावसे उल्लेख किया गया है, जो कि उचित ही है। मैं यह सोचनेका साहस करता हूँ कि यह संकल्प ऐसा है जिसकी इस राज्यको नकल करनी चाहिए। यह हमारी इन अभागी बहनोंको कुछ बुनियादी न्याय प्रदान करता है। आपको शायद पता हो कि इस समय मद्रास विधान परिषदमें उसकी एक महिला सदस्या द्वारा एक विधेयक पेश करनेकी कोशिश की जा रही है, जो काफी कुछ मैसूर राज्यके संकल्प-जैसा ही है। प्रतिवेदनमें दिये