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भाषण : त्रिचूरमें

अच्छा कतैया है। जाँचका काम अब भी जारी है, और यह प्रयोग जितने समयसे किया जा रहा है, उसमें मिली सफलता कुल मिलाकर उत्साह-वर्धक है। और हमने वास्तविक अनुभवसे यह भी पाया है कि इस प्रकार लड़कोंसे हमें जितना सूत प्राप्त हुआ है, वह मात्रामें उस सूतसे चार या पाँच गुना ज्यादा है जो हमें चरखेसे मिलता था । ऐसा नहीं है कि चरखेपर काम करनेवाला लड़का तकलीके मुकाबले कम सूत निकालेगा, बल्कि इसका कारण यह देखा गया कि सभी लड़कों द्वारा एक साथ चरखेपर काम कर सकना कतई असम्भव है। चरखेकी खूबी है कि वह इन नटखट लड़कोंके हाथमें पड़कर बार-बार खराब हो जाता है, और मैं आपको रहस्यकी यह बात बता दूं कि हमने यह भी पाया कि लड़के और लड़कियाँ आखिर लड़के और लड़कियाँ ही रहेंगे और नटखट भी होंगे। और उनके बीच ऐसा कोई कठोर अनुशासन तो था नहीं कि थोड़ी-बहुत निर्दोष शरारत भी वे न करें। लेकिन हमने पाया कि उनके अन्दर न समा पानेवाली शक्ति ही नटखटपनके रूपमें प्रकट होती है। इसलिए हम उस नटखटपनका उपयोग इस कामके लिए करते हैं और अब हम यदि वहां जायें, तो उन्हें मुस्कराते और गाते हुए खुशीके साथ और निष्ठापूर्वक प्रतिदिन आधा घंटा कताई करते हुए पायेंगे और हमारा लक्ष्य यह है कि हर लड़का साल-मरमें इतना सूत कात ले जिससे उसकी जरूरत पूरी हो सके और थोड़ा-बहुत उसके परिवारकी जरूरतके लिए भी बच रहे । हिसाब लगाकर देखा गया है कि यदि भारतकी आबादीका आधा हिस्सा भी अपने दैनिक अवकाशके घंटोंका कुछ अंश कताईके लिए दे तो सारे भारतको अपनी आवश्यकतासे भी अधिक सूत प्राप्त हो सकता है ।

लेकिन मुझे इस महती सभाका समय हाथ-कताईकी तफसीलें बतानेमें नहीं बर्बाद करना चाहिए। यह देखते हुए कि आप यह महान प्रयोग कर रहे हैं, मैं आपसे सिर्फ यह कहूँगा कि आप इस कामको बड़ी गम्भीरतापूर्वक, वैज्ञानिक तरीकेसे और कुशलतापूर्वक चलाइए। लेकिन यदि आप सचमुच गम्भीर हैं और महज इसके साथ खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं और यदि आपको भी मेरी तरह हाथकताईमें रुचि है, या मेरी रुचिका कुछ अंश भी आपमें है तो मैं आपसे कहूँगा कि आपके लिए यह कतई जरूरी है कि आप लड़कों और उनके माता-पिताओंमें खादी पहननेकी रुचि जगायें । मुझे आशा है, आप मेरी इस बातको समझेंगे कि जिस क्षण आप यह स्वीकार करते हैं कि लड़के खादी नहीं पहनते, उसी क्षण इस प्रयोगका कोई मतलब नहीं रह जाता है। इसलिए जब बड़ी सावधानीके साथ देखनेके बावजूद मैंने पाया कि इन संस्थाओंमें मैंने जिन लड़के-लड़कियोंको देखा, उनमें से बहुत कम लोग खादी पहने हुए थे, तब मुझे बहुत दुःख हुआ। लेकिन जबतक शिक्षक लोग स्वयं उदाहरण प्रस्तुत नहीं करते तबतक इसकी सम्भावना नहीं है कि लड़के और लड़कियाँ खादी पहनेंगे और न इसीकी सम्भावना है कि वैसा करनेके लिए उनके माता-पिता उन्हें प्रोत्साहित करेंगे। मैं कुछ बहुत अच्छे माता-पिताओंको जानता हूँ जो स्वयं खूब धूम्र पान करते हैं, लेकिन जो अपने बच्चोंको धूम्रपान न करनेकी शिक्षा देनेका प्रयत्न