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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कताईको एक वैज्ञानिक चीज और सौन्दर्य तथा कलाका चिह्न बताता हूँ। और चूंकि वे प्रतियोगिताकी प्रणालीको, जो संसारमें सर्वव्यापी और सर्वोपरि बनी हुई है, अर्थ- शास्त्रके क्षेत्रमें अन्तिम वस्तु मानते हैं, अत: उनका विश्वास है कि कताई तो मेरा एक खिलौना मात्र है, जो मेरे मरनेके बाद ही खत्म हो जायेगी। इसलिए आप इस शिशुके लिए, जो अपने अस्तित्वके लिए संघर्ष कर रहा है, मेरी चिन्ताको समझेंगे, और अगर मैं आपको सावधान करूँ कि आप कताईके सिलसिलेमें गलत ढंगसे काम न करें तो इसके लिए आप मुझे क्षमा करेंगे। मैं यह बात १९०८ से इस विषयका ध्यानपूर्वक अध्ययन करनेके बाद कह रहा हूँ। कताई उन बहुतसे हस्तकौशलोंमें से नहीं है, जिन्हें लड़के-लड़कियाँ सीख सकते हैं या हमारे देशके लोग अपना सकते हैं, बल्कि मेरी रायमें यह भारतके क्षुधा-पीड़ित जन-साधारणके जीवनका मूलभूत तथ्य है। मैं इस नतीजेपर पहुँचा हूँ कि किसी भी योजनामें हाथ-कताईको केन्द्रीय स्थान प्रदान किये बिना जन-साधारणकी उस गहरी गरीबीका कोई हल सम्भव नहीं है जो दिनोंदिन और गहरी होती जा रही है। इसलिए मैंने राज्यको जिस ढंगसे हाथ-कताईका समर्थन करते देखा है, उसके लिए मैं उसे बधाई देता हूँ और जिन लड़के-लड़कियोंको आज मैंने देखा, उन्हें तथा शिक्षकोंको भी कताईको अपनानेके लिए बधाई देता हूँ। लेकिन साथ ही मैं राज्यके अधिकारियोंसे और शिक्षकोंसे, लड़के- लड़कियोंसे और उन सबसे जिनके हाथमें राज्यके कल्याणका भार है, यह अनुरोध करता हूँ कि वे इस विषयकी ओर गम्भीरतापूर्वक ध्यान दें ।

हम अहमदाबादमें तथाकथित 'अस्पृश्य' जातिके लगभग जातिके लगभग १,००० लड़कोंके साथ एक प्रयोग कर रहे हैं और मैं दावा कर सकता हूँ कि हमने काफी हदतक सफलता प्राप्त की है। यह प्रयोग श्रीमती अनसूयाबाईकी व्यक्तिगत देख-भालमें किया जा रहा है, जो स्वयं एक करोड़पति परिवारमें पली हैं। लेकिन मैंने आपको बताया कि इस प्रयोगके सिलसिलेमें जो सफलता प्राप्त हुई है उसके लिए कई विशेषज्ञोंको अपने कई बहुमूल्य घंटे उसके विकासपर खर्च करने पड़ते हैं, और वहीं हम इस अन्तिम नतीजेपर पहुँचे कि स्कूलोंमें चरखा लागू करना गलत होगा, और कताईको तकलीतक ही सीमित रखना जरूरी होगा। मैं उन विभिन्न प्रक्रियाओंकी यहाँ चर्चा नहीं करूंगा जिन्हें हमने वहाँ आजमाया, बल्कि मैं आपको केवल उस प्रयोगके परि- णाम बताऊँगा । हर लड़केकी तकलीकी सावधानीसे जाँच की जाती है; हर लड़केके पास अच्छी तरह घुनी हुई रुईकी पूनियाँ होती हैं। तकली चलाते समय लड़कोंकी हथेलियाँ अकसर पसीनेसे नम हो जाती हैं, इसलिए उन्हें बताया जाता है कि वे ध्यान रखें कि हथेलियोंमें पसीना न आने पाये । हर लड़केका सूत सावधानीके साथ रखा जाता है और उसके बट, नम्बर और मजबूतीकी जाँच की जाती है। और हमने देखा कि अविश्वसनीय रूपसे कम समयके भीतर परिणाम ५० प्रतिशत अधिक बढ़ गया। यह भी देखा गया कि इस जाँचके फलस्वरूप औसत गतिमें भी वृद्धि हुई। इस कलाको सीखनेके लिए प्रत्येक शिक्षकको वेतनमें थोड़ी-सी वृद्धि प्रदान करके प्रोत्साहित किया गया । फल यह है कि अब हर शिक्षक अच्छा धुनिया और