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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देनेकी अपील की। चन्दा एकत्र करनेवाले स्वयंसेवकोंको लोगोंने उदारतापूर्वक चन्दा दिया। महात्माजीने कहा कि त्रावणकोर और कोचीनकी महिलाओंके तनपर बहुत जेवर नहीं होते; लेकिन में स्वीकार करता हूँ कि आपने जो थोड़े-बहुत जेवर पहन रखे हैं, इनसे भी मुझे ईर्ष्या होती है (इसपर बहुत जोरकी हँसी हुई।) देशमें बहुत-से लोग हैं, जो सचमुच भूखों मर रहे हैं अतः आपके लिए जेवरोंसे सजनेका कोई औचित्य नहीं है। सच्चा सौन्दर्य चरित्रकी शुद्धितामें है, जेवर पहननेमें नहीं।

[अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, १५-१०-१९२७

८९. पत्र : डब्ल्यू० एच० पिटको

ट्रेनमें
त्रिचूर
१४ अक्टूबर, १९२७

प्रिय श्री पिट,

[१]

मुझे आपकी चिट्ठी पाकर तथा यह जानकर कि आप काफी देरतक सोये, खुशी हुई। सबेरे मिलना तो एक फिजूलका तकल्लुफ होता । कृपया श्रीमती पिटको बता दीजिए कि मैं उनसे हाथ मिला पाया इसकी मुझे काफी खुशी हुई।

अलेप्पीमें दिया गया मेरा भाषण तो आपने देखा ही होगा। श्री माधवन और अन्य मित्रोंने अपना कार्य स्थगित कर दिया है, और मुझसे सलाह लिये बिना वे आगे कोई कदम नहीं उठायेंगे । और यह कहनेकी भी जरूरत नहीं कि मैं आपसे पहले सम्पर्क स्थापित किये बिना कुछ नहीं करूंगा। क्या मैं आपसे तिरुवरप्पु और सुचिन्द्रम्के मामलोंको ठीक-ठाक करनेकी आशा रखूं ? यदि आप चाहते हैं कि मैं देवस्वमके आयुक्तको लिखूं तो मैं खुशीसे ऐसा करूँगा ।

अब यदि निषेधादेश वापस ले लिये जायें तो यह एक शोभनीय कार्य होगा ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० १४६२३) की माइक्रोफिल्मसे ।

 
  1. १. त्रिवेन्द्रम् में पुलिस आयुक्त ।