पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/१६१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३३
भाषण : एर्नाकुलम्में

मैं जानता हूँ कि यदि मैं केवल छात्र-जगतकी भी शक्तिका उपयोग कर सकूं तो खादीको भारतमें घर-घर फैला देने में और जनसाधारणकी कष्टकर गरीबीको दूर करनेमें कोई कठिनाई नहीं होगी। इस सुन्दर राज्यके लड़के-लड़कियाँ, स्त्री-पुरुष याद रखें कि बड़े शहरोंमें लड़के और लड़कियाँ जो शिक्षा प्राप्त करते हैं, वह देशके मेहनतकश जनसाधारणके बलपर ही प्राप्त करते हैं। और मैं आपको बता कि आप कुछ देख-सीख सकें, इसके लिए मैंने अपने सामने एक छोटी-सी, बहुत छोटी-सी खादी प्रदर्शनी लगा दी है।

यहाँ महात्माजीने कुछ बारीक हाथ-कती और हाथ-बुनी साड़ियाँ और कुछ बटुए सामने रखे, जिनमें से कुछमें बारीक कढ़ाईका काम किया हुआ था। उन्होंने बताया कि साड़ियाँ आन्ध्र देशमें तैयार की गई थीं और ऐसी थीं जिन्हें शौकीनसे- शौकीन-मिजाज औरत पहन सकती है। उन्होंने कहा, इन प्रदर्शित वस्तुओंसे केवल उन्हीं कतैया लोगोंको रोजी नहीं मिलती जो एक आनेसे दो आनेतक रोज कमाते हैं, बल्कि उनको भी मिलती है जो एकसे दो रुपयेतक रोज कमाते हैं। उन्होंने बताया कि कढ़ाईका काम बम्बईमें किया गया है, जहाँ बम्बईकी कुछ धनी हिन्दू और पारसी महिलाएँ बिना कुछ वेतन लिये अपनी देख-रेखमें लगभग १५० लड़कियोंकी एक कक्षा चलाती हैं। महात्माजीने कहा कि ये प्रदर्शित चीजें उन मिलके बने कपड़ों से कहीं अच्छी हैं, जिन्हें आपमें से बहुत-से लोगोंने पहन रखा है और जिन्हें पहननमें त्रावणकोर और कोचीनकी महिलाओंको हमेशा बहुत खुशी होती है। उन्होंने कहा कि मेरे सामने रखी ये खादीकी चीजें राष्ट्र-भावना और धार्मिक भावना से भरी हुई हैं। मैंने जिस खादीका जिक्र किया है, उसे पहननेवाला स्त्री या पुरुष अपने देशके गरीबसे-गरीब व्यक्तिके साथ सीधा नाता स्थापित कर लेता है।

इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप इस खादी-कार्यको वक्त गुजारनेका एक साधन नहीं, बल्कि एक सौभाग्यकी बात ही समझें। मैं चाहता हूँ कि इस संस्थाके लड़के- लड़कियाँ इसे प्रेमका सन्देश मानकर अपनायें और गाँवोंमें काम करें।

महाराजा साहबने मुझे जो आतिथ्य प्रदान किया और मुझे जो उपहार भेजा है, उसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देना चाहता हूँ। प्रतिदानमें मैं केवल इतना ही कर सकता हूँ कि इस राज्यमें जो कई बातें मौजूद हैं, उनमें से कुछके बारेमें अपने विचार स्पष्ट रूपसे व्यक्त करूँ। मुझ जैसा आदमी अन्य किसी प्रकारसे कोई सेवा नहीं कर सकता। इसलिए मैं उसी समस्याकी चर्चा करूँगा, जिसने मेरा ध्यान त्रावणकोरमें अपनी ओर आकृष्ट किया था, क्योंकि मैं देखता हूँ कि यह समस्या आप कोचीनके लोगोंके लिए भी उतनी ही चिन्ताका विषय है जितनी कि त्रावणकोरके लोगोंके लिए है। आपके यहाँ अस्पृश्यता है। यहाँ कुछ जातिके लोगोंको दूसरे लोग अपने निकट- तक नहीं आने देते, और कुछ ऐसे हैं जिन्हें देखना भी पाप माना जाता है। और यह सब मुझे एक ऐसे राज्यमें देखकर दुःख होता है जिसपर एक हिन्दू राजाका शासन है। अस्पृश्यता इन हिन्दू राज्योंमें हो, यह अत्यन्त खेदकी बात है।