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टिप्पणियाँ

जाये तथा विद्यार्थियोंको खेती, इंजीनियरिंग, तकनीकी विज्ञान और व्यापारको डिग्रियोंकी तरफ आकर्षित किया जाये ।

हमारी आजकलकी शिक्षा किताबी ज्ञानको जो एकांगी महत्त्व देती है, वह इसका एक बड़ा दोष है। इसीकी तरफ सर विश्वेश्वरैयाने हम सबका ध्यान खींचा है। मैं इससे भी ज्यादा गम्भीर एक और दोष बताना चाहता हूँ । विद्यार्थियोंके मनमें ऐसा खयाल पैदा किया जाता है कि जबतक वे स्कूल-कालेजमें किताबी ज्ञान अर्जित करनेमें लगे हुए हों, तबतक उन्हें पढ़ाईको नुकसान पहुँचाकर सेवाके काम नहीं करने चाहिए, भले ही वे काम कितने ही छोटे या थोड़े समयके हों । विद्यार्थी यदि राहत कार्य करनेके लिए अपनी साहित्य या उद्योगकी शिक्षा मुल्तवी रखें, तो इससे वे कुछ खोयेंगे नहीं, बल्कि उन्हें बहुत लाभ होगा। गुजरात में कुछ विद्यार्थी आज ऐसा काम कर रहे हैं। हर प्रकारकी शिक्षाका ध्येय सेवा ही होना चाहिए। और यदि शिक्षा-कालमें ही विद्यार्थीको सेवा करनेका दुर्लभ अवसर मिले, तो उसे अपना बड़ा सौभाग्य समझना चाहिए और इसे अपनी शिक्षामें बाधाके बजाय उसका पूरक मानना चाहिए। इसलिए गुजरात राष्ट्रीय कालेजके विद्यार्थियों द्वारा सेवाका काम करनेके लिए गुजरातकी हदके बाहर जानेके विचारका मैं हृदयसे स्वागत करता हूँ । थोड़े ही दिन पहले मैंने कहा था कि हममें प्रान्तीयताको संकीर्ण भावना न आनी चाहिए। राहत देनेका काम करनेवालोंका दल खड़ा कर सकनेकी दृष्टिसे जितना संगठन गुजरातमें है, उतना सिन्धमें नहीं है। इसलिए गुजरातसे यह आशा रखी जाती है कि वह अपने स्वयंसेवकोंको सिन्धमें या दूसरे किसी प्रान्तमें, जहाँ-कहीं उनकी सेवाकी जरूरत हो, वहाँ भेजेगा। और फिर सामान्य रूपसे गुजरात, और विशेष रूपसे गुजरात राष्ट्रीय शालाके छात्रोंके ऊपर सिन्धका ॠण है, जिसने असहयोग आन्दोलनके दौरान तीन प्रतिष्ठित शिक्षा शास्त्री भेजे थे आचार्य गिडवानी, आचार्य कृपलानी और अध्यापक मलकानी । अत: गुजरातके छात्र सिन्ध जाकर अपने साधारण कर्त्तव्यका ही निर्वाह करेंगे ।

गुरुकुल कांगड़ीसे सहायता

गुजरातने संकट-निवारणके लिए जो अपील की थी, उसका जो जवाब मिला है वह बहुत ही सन्तोषकारक है। जिन्होंने शुरूमें ही मदद भेजी, उनमें दो संस्थाएँ भी थीं: गुरुकुल कांगड़ी और शान्तिनिकेतन । यह समझकर कि उनके दानसे मुझे कितनी खुशी होगी, उन्होंने दानकी खबर मुझे तारसे दी और दान सीधा श्री वल्लभ- भाईके पास भेजा । गुरुकुलकी तरफसे दानकी जो चार किस्तें आईं, उनका ब्यौरा आचार्य रामदेवजीने मुझे लिखा है। वे कहते हैं कि अभी और मिलनेकी आशा है। वे लिखते हैं:

शिक्षकोंने अपनी तनख्वाहमें से अमुक फीसदी रकम दी है। ब्रह्मचारियोंने हमेशा की तरह अपने कपड़े धोबीसे न धुलवाकर स्वयं अपने कपड़े धोये और रुपया बचाया है। कन्या गुरुकुलकी ब्रह्मचारिणियोंने अमुक समयतक दूध-घी छोड़कर बचत की है।