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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपेक्षा सबसे आसान है। मैं एक कारण और बताना चाहता हूँ कि आपको त्रावण- कोरमें बनी खादी क्यों पहननी चाहिए। जब आप पूर्ण मद्यनिषेधके लिए आन्दोलन करेंगे तो आपके सामने यह तर्क रखा जायेगा कि यदि त्रावणकोरके बच्चोंको शिक्षा देनी है तो आबकारीसे प्राप्त होनेवाला राजस्व, जो मैं समझता हूँ कि बीस लाख रुपये से ऊपर है, किसी अन्य साधनसे प्राप्त करना होगा । यदि त्रावणकोरके ४० लाख लोग त्रावणकोरमें बनी खादी ही पहनें तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आप खादीसे सालाना १ करोड़ ६० लाख रुपयेकी बचत करेंगे। आप खादीके अर्थ- शास्त्रका ध्यानपूर्वक अध्ययन कीजिए तो देखेंगे कि आबकारी राजस्वको हटाने और आमदनीका दूसरा जरिया ढूंढ़नेकी समस्या सबसे आसान बन जायेगी । आप इस महान उद्देश्यको अपने उस समयका उपयोग करके नहीं जो आप किसी आवश्यक कार्यमें लगाते हैं, बल्कि व्यर्थ जानेवाले समयका उपयोग करके पूरा कर सकते हैं। इस खादी उद्योगका उद्देश्य किसी एक भी मौजूदा उद्योगका स्थान लेना नहीं है। इसका उद्देश्य राष्ट्रके खाली समयका उपयोग करना है। मुझे कई त्रावणकोरवासियोंसे मालूम हुआ है कि यहाँके लोगोंके पास इतना फालतू वक्त है कि यह कहना गलत नहीं होगा कि वे कुछ हदतक आलस्यका जीवन व्यतीत करते हैं।

मैं आशा करता हूँ कि ये तीनों बातें, जो मैंने आपको सुझाई हैं और जिनके बारेमें मैंने आपसे चर्चा की है, मेरे जानेके बाद भी आपके दिमागमें बनी रहेंगी। मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह आपको मेरे शब्दोंको समझनेकी बुद्धि और उनपर अमल करनेकी शक्ति प्रदान करे ।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, १५-१०-१९२७

यंग इंडिया, २०-१०-१९२७

८४. टिप्पणियाँ

सच्ची शिक्षा

प्रोफेसर मलकानीने अहमदाबादसे नीचे लिखा तार भेजा है:

सर पुरुषोत्तमदाससे मिलने बम्बई जा रहा हूँ । केन्द्रीय कोषसे तत्काल सहायताको आवश्यकता । वल्लभभाईने सहायताका वचन दिया है। कृपलानी और विद्यापीठके स्वयंसेवक सिंघ जा रहे हैं ।

सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैयाने ३ अक्टूबरको पूनामें अखिल भारत स्वदेशी बाजार और औद्योगिक प्रदर्शनीको खोलते समय नीचे लिखी बातें कही बताते हैं :

यदि मेरे कहनेका विश्वविद्यालयोंपर कोई असर पड़ सके, तो मैं उनसे प्रार्थना करता हूँ कि जबतक हमारी वर्तमान आर्थिक कमजोरी बनी हुई है, तबतक साहित्य और सैद्धान्तिको पाठ्यक्रमों में छात्रोंकी भर्ती मर्यादित कर दी