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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझसे गलती हुई । आदेश द्वारा सारे कोट्टायम जिलेमें उनके भाषण आदि देनेपर निषेध लगा दिया गया है। मेरी रायमें जिन परिस्थितियोंका मैंने जिक्र किया है उनमें यह आदेश कतई अनावश्यक है। उतना ही अनावश्यक वह आम आदेश है, जिसके जरिये उस हलकेमें सभाओंपर रोक लगाई गई है।

दो शब्द मैं इन अवर्ण मित्रोंसे कहूँगा। मैं उनके दुःखसे उन्हींके समान दुखी । यदि मुझे इत्मीनान हो जाता या अन्य कोई मुझे कायल कर सकता कि अपनी जान देकर मैं उनके लिए पूर्ण स्वतन्त्रताका पट्टा प्राप्त कर सकता हूँ तो मैं इसी क्षण अपनी जान दे दूंगा। लेकिन जबतक मुझे इस बातका यकीन नहीं हो जाता तबतक मैं इसीमें सन्तुष्ट हूँ कि जीवित रहूँ और इस स्वतन्त्रताको प्राप्त करनेके लिए प्रयत्न करूँ । अतः मैं उनसे याद रखनेको कहूँगा कि जब हम किसी घोर अन्यायको दूर करना चाहते हैं तो हम अधीर हो जा सकते हैं, लेकिन हमारे लिए धीरज रखना जरूरी है। सचाई, आत्मत्याग और अटल संकल्प हो तो सफलता निश्चित समझिए । इतिहासके पन्ने खुले हुए हैं और जो कोई चाहे उनमें पढ़ सकता है कि सुधारके लिए काम करनेवालोंने परिणामोंकी बिना कोई परवाह किये अपना काम किया है और इस विश्वासके साथ काम किया है कि उनका काम ही उनका पुरस्कार है, और काम करनेसे वह सुधार निश्चित रूपसे सम्पन्न होगा, जिसको सम्पन्न करानेकी आशासे काम किया जाता है। इसलिए मैं उनसे कहूँगा कि वे 'भगवद्गीता 'के उपदेशको ध्यानमें रखकर उसी भावनासे काम करें। वह हमें सिखाती है कि मनुष्यके लिए कर्म करना ही उचित है, फलपर उसका कोई वश नहीं है। उस दिव्य पुस्तक- में यह अडिंग वचन दे दिये जानेके बाद हमारे लिए निराश होने या अधीरतासे पागल हो जानेका कोई कारण नहीं है। वे यह भी समझ लें कि आज सारे भारतमें एक अकेला मैं ही नहीं, मेरी तरह बहुत-से हिन्दू, जो प्रखर बुद्धिवाले, भारतके तपे हुए सेवक, और देशके जाने-माने कार्यकर्त्ता हैं, अपनी सामर्थ्यभर इसी उद्देश्यके लिए कार्य कर रहे हैं। मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि अत्यन्त निकट भविष्यमें हम सब देखेंगे कि यह भयानक दुःस्वप्न-जैसी अस्पृश्यता अतीतकी चीज बन जायेगी ।

अब दो शब्द सवर्ण हिन्दुओंसे । मैंने अभीतक बताया है कि राज्यका क्या कर्तव्य है और अवर्ण हिन्दुओंका क्या कर्त्तव्य है। लेकिन सवर्णांका कर्त्तव्य कुछ कम बड़ा नहीं है, बल्कि ज्यादा बड़ा है। कोई भी राज्य आखिरकार अपनी प्रजाके विचारोंको ही प्रतिबिम्बित करता है। अस्पृश्यताका अपराध सवर्ण हिन्दू करते हैं । इसलिए उन्हें प्रायश्चित्त करनेकी जरूरत है। और सवर्ण हिन्दुओंका कर्त्तव्य है कि वे हर सम्भव तरीकेसे अवर्ण हिन्दुओंकी सहायता करें। यदि वे इस उद्देश्यके लिए अपनी सक्रिय सहानुभूति प्रदान करेंगे और सरकारपर दबाव डालेंगे तो वे पायेंगे कि अवर्ण हिन्दुओंके लिए सत्याग्रह-रूपी भयंकर आत्मत्यागका सहारा लेना बिलकुल अनावश्यक सिद्ध होगा। यदि वे त्रावणकोरमें इस सुधारका श्रेय लेना चाहें तो उन्हें कटुताका प्याला लबालब भर जाने और अवर्ण हिन्दुओं द्वारा ऐसी स्थिति अपनानेपर विवश हो जानेसे पहले ही कार्रवाई करनी चाहिए जिस स्थितिमें उन्हें डालना हमारे लिए कलंककी बात होगी ।