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भाषण : अलेप्पीको सार्वजनिक सभामें

वह राहत यदि उन्हें समयके अन्दर नहीं मिलती, और यदि सभी प्रारम्भिक उपायों के बाद भी वे राहत पानेमें विफल होते हैं तो जो उनका उचित अधिकार है, उसे प्राप्त करनेके लिए वे न केवल फिरसे सत्याग्रह शुरू करनेको स्वतन्त्र होंगे, बल्कि वैसा करना उनका कर्त्तव्य होगा।

मैं यहाँसे जो आशा लेकर जा रहा हूँ, उसके फलितार्थोंको मैं आपके सामने दोहरा दूं। हालाँकि मैं वाइकोम समाधानको एक अर्थमें सतही समाधान मानता हूँ, लेकिन अन्य पहलुओंसे और अन्य दृष्टिकोणोंसे यह समाधान राज्य तथा अवर्णों, दोनोंके लिए सम्मानजनक है। यह एक ऐसा समाधान है, जिसे मैं स्वतन्त्रताका बुनियादी पत्थर मानता हूँ। मैं इसे स्वतन्त्रताका बुनियादी पत्थर इसलिए मानता हूँ कि यह जनता और राज्यके बीच समझौतेका एक ऐसा दस्तावेज है जो कमसे-कम एक अर्थमें स्वतन्त्रताकी दिशामें एक बड़ा कदम है। लेकिन जहाँतक अवर्णोंका प्रश्न है, यह किसी भी अर्थमें अन्तिम समाधान नहीं है। यह तो ऐसा समाधान है जिसमें उन्होंने फिलहाल अपनी कमसे-कम मांगें पूरी होनेमें सन्तोष माना है और इस समाधानसे सर- कार पीछे नहीं हट सकती। इस समाधानके द्वारा सरकारने अवर्णोंके लिए एक मंच खड़ा कर दिया है, जहाँसे वे और आगे बढ़ सकते हैं। अतएव इस समाधानकी व्याख्या सदा अवर्णोंके हितमें होनी है। इसी प्रकार इसका प्रयोग गैर-हिन्दुओंकी स्वतंत्रता- पर अंकुश लगानेके लिए भी नहीं किया जा सकता । तिरुवरप्पुके वर्तमान विवाद इस समाधानके सिद्धान्तको लागू करके सरकारके लिए उन ईसाइयों तथा अन्य गैर- हिन्दुओंके अधिकारोंमें कोई कटौती करना सम्भव नहीं है जो वहाँ सड़कोंका इस्तेमाल करते रहे हैं। इसलिए सरकारका यह कर्त्तव्य है कि वह इन सड़कोंको अवर्ण हिन्दुओंके लिए खोल दे, और इन सड़कोंको अवर्ण हिन्दुओंके लिए खोलनेमें जो भी कठिनाई हो उसे दूर करना सरकारका काम है। अवर्ण हिन्दुओंको इस मामलेमें सरकारकी कठिनाईका लिहाज करनेकी जरूरत नहीं है। बिलकुल ऐसा तो नहीं, लेकिन इससे मिलता-जुलता मामला सुचिन्द्रम् मन्दिरके इर्दगिर्दकी सड़कोंका भी है, और मैं आशा कर रहा हूँ कि निकट भविष्यमें सरकार मेरे द्वारा सुझाई गई राहत देनेके मार्गमें जो भी कठिनाई हो उसे पार कर लेगी।

इन शर्तोंके साथ मैंने एजवाहा मित्रोंको अपनी कार्रवाई स्थगित करनेकी सलाह दी है और मैं यह सोचनेका साहस करता हूँ कि इन नई परिस्थितियोंमें सरकारने श्रीयुत माधवन्के ऊपर जो आदेश जारी करना आवश्यक माना है, उसे वह अविलम्ब वापस ले लेगी। मैं इस आदेशको कमसे-कम अब कतई अनावश्यक मानता हूँ, और आम आदेशको भी अनावश्यक समझता हूँ जिसके द्वारा तिरुवरप्पुके आसपास एक खास दायरेमें सभाओं आदिपर रोक लगाई गई है।[१]

श्री टी० के० माधवत् : महात्माजी, मुझसे सारे कोट्टायम जिलेमें कोई भाषण आदि न देनेको कहा गया है।

  1. १. इसके आगेका अंश १५-१०-१९२७के हिन्दूसे लिया गया है।