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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसा मानता हूँ कि नायडी लोगोंके बीच न रहकर मैं ज्यादा बड़ा प्रायश्चित्त कर रहा हूँ, क्योंकि आज हिन्दूधर्म और हिन्दुओंके ऊपर जो महापाप चढ़ा हुआ है, उसकी अनुभूतिके कारण मैं बहुत बड़ी मानसिक यन्त्रणा भोग रहा हूँ। एक होशहवाससे दुरुस्त और सनातनी हिन्दूके नाते - मैं अपनेको सनातनी हिन्दू ही मानता हूँ - अपनी पूरी जिम्मेदारीके एहसासके साथ मैं कहता हूँ कि यदि हम समय रहते नहीं जागे और इस कलंकको हमने अपने बीचसे मिटा न दिया तो हम हिन्दुओंको ईश्वर और मनुष्य- मात्रके सामने इस भयंकर पापकी जवाबदेही करनी पड़ेगी।[१]

आज तीसरे पहर एजवाहा जातिके कई नेताओंसे काफी देरतक मेरी बातचीत हुई, और मैं आपसे सच कहता हूँ कि अगर मुझे यह बता न दिया गया होता कि वे लोग एजवाहा जातिके हैं, तो मैं नहीं जान सकता था कि वे एजवाहा हैं। न ही मैंने उनमें और तथाकथित सवर्णोंमें कोई अन्तर देखा। उनकी आर्थिक स्थिति तो निस्सन्देह बहुत-से सवर्णोंसे बेहतर है। उनकी शैक्षणिक योग्यतामें किसी प्रकारकी कमी नहीं थी और वे साफ-सुथरे तो इतने थे जितना साफ-सुथरा मैंने देशके एक छोरसे दूसरे छोर तककी यात्रा करते हुए बहुत-से ब्राह्मणों और अन्य लोगोंको भी नहीं पाया है। अतः जब मैं इन मित्रोंके सामने बैठा और मैंने उनका अभिनन्दनपत्र पढ़ा तो एक हिन्दूके नाते यह सोचकर मेरा सर शर्म से झुक गया कि ये ही मित्र अस्पृश्य समझे जाते हैं, इन्हें त्रावणकोरकी कुछ सार्वजनिक सड़कोंपर चलनेके योग्य नहीं माना जाता, और ये ही मित्र हैं जिनकी मन्दिरमें उपस्थितिसे मन्दिरका अहाता अपवित्र हो जायेगा, और ये ही वे लोग हैं जो अपने बेटों और बेटियोंको कमसे-कम कुछ सरकारी स्कूलों तकमें नहीं भेज सकते यद्यपि वे इस सभामें उपस्थित बड़ेसे-बड़े व्यक्तिके बराबर ही राज्यको कर देते हैं। यह बात याद रखिए कि इनपर ये अमानुषिक निर्योग्यताएँ तो लगी हुई हैं, लेकिन सवर्णोंके मुकाबले उन्हें कर देनेके मामलेमें कोई छूट नहीं है। तब, मेरी रायमें यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसके लिए अपने धर्मकी चिन्ता करनेवाले सभी हिन्दुओंका कर्त्तव्य है कि वे अपने जीवनको समर्पित कर दें, और मुझे पूरा विश्वास है कि उदार राजमाता तबतक चैनसे नहीं बैठेंगी जबतक यह कलंक त्रावणकोरसे दूर नहीं हो जाता। मैंने राजमाता, दीवान बहादुर, पुलिस कमिश्नर तथा अन्तमें देवस्वम् कमिश्नरसे जितनी भी बातचीत की है, उसके बलपर मैं त्रावणकोर इस आशाके साथ छोड़ रहा हूँ कि कमसे-कम सड़कोंकी समस्या सभी सम्बन्धित लोगोंकी दृष्टिसे सन्तोषकारक रूपसे हल हो जायेगी। इसी हार्दिक आशाके बलपर मैंने आज शिष्टमण्डलको बेहिचक सलाह दी है कि सत्याग्रह स्थगित कर दिया जाये। मुझे इस सभाको यह बता सकनेकी खुशी है कि इस शिष्टमण्डलने मेरी सलाह मान ली है और अभी, जबकि इस समस्याको संतोषप्रद ढंगसे सुलझानेके प्रयत्न किये जा रहे हैं, सत्याग्रह स्थगित कर दिया है। ईश्वर न करे कि मैं जो आशा लेकर जा रहा हूँ, वह किसी प्रकार- से निष्फल हो । लेकिन मैंने मित्रोंसे कह दिया है कि जिस राहतके वे हकदार हैं,

  1. १. आगेका अंश "मैसेज टू त्रावणकोर " ( त्रावणकोरको सन्देश ) में से लिया गया है, जो यंग इंडियाके, २०-१०-१९२७ के अंक में छपा था।