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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं मिट रहा है, न मिटनेवाला है, क्योंकि मैं साफ देख रहा हूँ कि अस्पृश्यता अब एक दम तोड़ती लाश-भर रह गई, जो जैसे-तैसे कुछ साँस ले सकेगी।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया,२०-१०-१९२७

८२. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

यात्रामें
१२ अक्टूबर, १९२७

प्रिय चार्ली,

मुझे तुम्हारे वे दो पत्र, जिनका तुमने वादा किया था मिल गये हैं, और वह भी जिसमें तुमने नाडकर्णीको जवाब दिया है। जवाब यथासमय प्रकाशित किया जायेगा ।[१]

मैं कताई-निबन्धके सम्बन्ध में तुम्हारे विचार तथा वाइसरायसे तुमने जो कहा, वह जाननेको उत्सुक हूँ।[२]

मुझे पूरी आशा है कि तुमने जो सर विश्वेश्वरैयाका नाम भेजा है, उसे बहुत विलम्बसे भेजा गया नहीं माना जायेगा ।

उम्मीद है, प्रागजी और मेढके विषयमें लिखा गया मेरा पत्र तुम्हें मिल गया होगा। उड़ीसाके सम्बन्धमें तुम्हारा तार मुझे मिल गया ।

जब तुम्हारा हाथ बिलकुल ठीक हो जाये तो यह सब बतानेके लिए तुम्हारे बारह आनेके व्ययका मैं बुरा नहीं मानूँगा ।

सप्रेम,

मोहन

अंग्रेजी (जी० एन० २६२२) की फोटो-नकलसे ।

 
  1. १. देखिए "यूज़ ऑफ ट्रैक्टर्स" (ट्रैक्टरोंका उपयोग), यंग इंडिया, ३-११-१९२७
  2. २. इस सम्बन्ध में गांधीजी द्वारा लिखे पिछले पत्रके लिए देखिए “पत्र : सो० एफ० एन्ड्यूजको ", १-१०-१९२७ ।