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७६. पत्र: होरेस जी० अलेक्जेंडरको

यात्रामें
१० अक्टूबर, १९२७

प्रिय मित्र,

इन दिनों मैं आपका पत्र अपने सामने रखे हुए हूँ। चूंकि आपके पत्रके मुता- बिक आपके साबरमती आश्रम जानेका समय नजदीक आ रहा है, इसलिए यह पत्र मैं आपको यह बतानेके लिए लिख रहा हूँ कि आपका वहाँ जाना आश्रमके लोगोंके लिए कितनी खुशीकी बात होगी। लेकिन मुझे आपको यह सूचित करते हुए दुःख होता कि आपके स्वागतके लिए मैं वहाँ व्यक्तिगतरूपसे उपस्थित नहीं होऊंगा। इस समय मैं चरखेके सन्देशके सम्बन्धमें दक्षिणमें यात्रा कर रहा हूँ और यह यात्रा नवम्बरके मध्यतक जारी रहेगी। इसके बाद मैं उड़ीसा जाऊँगा । जनवरीके शुरू होनेसे पहले आश्रममें लौट जानेकी उम्मीद करता हूँ ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्री होरेस जी० अलेक्जेंडर

मार्फत श्री जे० एस० हॉयलैंड
होली रोड

नागपुर
अंग्रेजी (जी० एन० १४०४) की फोटो-नकलसे ।

७७. पत्र : छगनलाल जोशीको

त्रिवेन्द्रम्
१० अक्टूबर, १९२७

तुम्हें घबरानेका कोई कारण नहीं है। मैं जानता हूँ कि तुम प्रयत्नशील हो । अपनी पत्नीके सम्बन्धमें निविकार रहना अत्यन्त कठिन है, यह मैं तो स्वयं अपने अनुभवसे जानता हूँ इसलिए तुम्हारे प्रति सहानुभूति ही महसूस करता हूँ। किन्तु जबतक तुम दोनों एकान्तमें रहना बन्द नहीं करोगे, अलग-अलग नहीं सोओगे और यदि जरूरी जान पड़े तो कुछ समयके लिए एक-दूसरेसे दूर नहीं रहोगे तबतक एक दूसरेके प्रति विकारकी भावना नहीं जीत सकोगे। तुमने मुझे यह तो बताया ही नहीं कि इस विषयमें तुम्हारी पत्नी तुम्हारी कितनी मदद करती है। यदि तुम्हें उसकी मदद मिलती हो तो तुम्हारा रास्ता आसान है, न मिलती हो तो अवश्य कठिन