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७५. पत्र : मीराबहनको

१० अक्टूबर, १९२७

चि० मीरा,

तुम्हारा पत्र मिला। हाँ, तुमसे सप्ताह में दो पत्र पाकर संतुष्ट रहूँगा। लेकिन जब तुम्हारी ओरसे मेरी चिन्ता खत्म हो जायेगी तो हफ्तेमें एक पत्र भी काफी होगा । वह चिन्ता अब समाप्तप्राय है। इसलिए मैंने तुम्हें रोज पत्र लिखना छोड़ दिया है।

कृष्णदास, सुरेन्द्र, छोटेलाल तथा दूसरोंके साथ अपनी योजनाओंपर विचार- विमर्श करना जारी रखो। उनकी जो राय हो, उनसे बतानेको कहो। तुम अति- रिक्त वार्डर नियुक्त कर सकती हो । भणसालीके पास जाना मत भूलना। उसने सात दिनका उपवास शुरू किया है। इसकी स्वीकृति मैं बहुत पहले दे चुका था। मुझे पता है कि तुम्हारी उपस्थितिसे उसे शान्ति मिलती है।

हाँ, यदि यहाँ और वहाँ सब कुछ ठीक रहा तो तुम उड़ीसा आ सकती हो । तुम्हें स्वस्थ रहना है।

मैं श्री स्मिथको तुम्हें कुछ पुस्तकें भेजनेके लिए लिख रहा हूँ ।

मैं कल यहाँ रेजीडेन्टसे मिला था। पहला प्रश्न जो उन्होंने मुझसे पूछा वह यह या कि क्या तुम मेरे साथ हो; और इसके बाद उन्होंने मुझे बताया कि जब वे छुट्टीपर थे तब उनके स्थानपर तुम्हारे बहनोईने काम किया है। मैंने उन्हें बताया कि तुम मेरे साथ चेट्टिनाडमें कुछ दिन रही थी ।

बालोंका प्रश्न मुझे खुद भी जरा मुश्किल लग रहा है। यह चीज अपने में अच्छी है, इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं। लेकिन वैसा करना ठीक होगा या नहीं, इस विषयमें मेरा मन निश्चित नहीं है। बहरहाल, इसके बारेमें मैं और नहीं सोचूंगा । वहाँकी स्त्रियोंको स्वयं फैसला करने दो । मणि बाल कटवानेका विरोध क्यों करती है ? इस सम्बन्धमें जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। मुझे नहीं मालूम कि इसके विषयमें लेडी स्लेडके क्या विचार होंगे? मैं चाहूँगा कि इसकी चर्चा तुम उनके साथ भी कर लो। मैं जानता हूँ कि तुमसे सम्बन्धित हर बातमें वह काफी रुचि लेती है।

तुम्हें मालूम है कि मगनलालके पास गोशालासे सम्बन्धित पुस्तकोंका अच्छा संग्रह है। तुम्हें उनमें से कुछको देख लेना चाहिए ।

सप्रेम,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२८६) से।
सौजन्य : मीराबहन