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भाषण : त्रिवेन्द्रम् में
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करके बुराईकी ओर ध्यान आकृष्ट करनेसे बचते हैं, इसके लिए वे स्वयं कष्ट सहनेका तरीका अपनाते हैं। वे कभी अतिरंजनाका सहारा नहीं लेते। वे कभी भी सत्यसे रंचमात्र विचलित नहीं होते और यद्यपि बुराई उन्हें असह्य होती है फिर भी बुराई करनेवाले तकके प्रति दुर्भावना नहीं रखते। इस तरीकेको मैंने एक छोटा-सा नाम देकर जिस प्रकार पहले दक्षिण आफ्रिकामें अपने लोगोंके सामने रखा था उसी प्रकार अपने देशके सामने रखा है। वह नाम है सत्याग्रह | सत्याग्रहको कभी भी सविनय अवज्ञा समझनेकी भूल न करें। इसमें सन्देह नहीं कि सविनय अवज्ञा सत्याग्रहकी ही एक शाखा है। लेकिन इसका प्रसंग शुरूमें नहीं, बल्कि बिलकुल अन्तमें आता है। यह कठोरतम अनुशासनकी अपेक्षा रखती है, बहुत अधिक आत्मसंयम चाहती है । यह उदारतापर आधारित होती है, और यह विरोधीकी मंशापर भी कभी सन्देह नहीं करती और न उसका कोई अनुचित अर्थ लगाती है। कारण यह है कि इसका उद्देश्य विरोधीसे जबरदस्ती अपनी बात मनवाना नहीं, बल्कि उसे अपनी बातका कायल करना होता है। इसलिए, जब मुझसे विरुधुनगरमें मिलने आनेवाले एक भाईके[१] द्वारा अपने पूरे सिद्धान्त और अपनी सारी कही बातोंको मैंने बिलकुल गलत ढंगसे पेश किया गया पाया तो मुझे कितना दुख और आश्चर्य हुआ होगा, इसकी कल्पना आप कर सकते हैं। 'त्रिवेन्द्रम् एक्सप्रेस' में मैंने उनके और मेरे बीच हुई बातचीतकी उनके द्वारा दी गई एक रिपोर्ट पढ़ी। इस रिपोर्टमें आरम्भसे अन्ततक उस बातचीतको सिर्फ तोड़ा-मरोड़ा गया है ( " शेम " की आवाज) ।

लेकिन इसपर “शर्म, शर्म ” की आवाज लगानेकी जरूरत नहीं है। जिन सज्जनने “ शर्म" की आवाज लगाई, वे उदारताकी खूबी या अर्थको नहीं जानते। कारण यह है कि मैं क्षण-भरको भी ऐसा नहीं सोचता कि जिन भाईने मुझसे मुलाकात की थी उन्होंने जान-बूझकर मेरी कही बातोंके अर्थको गलत रूपमें पेश किया। आज सुबह उन्होंने मुझे जो स्पष्टीकरण दिया, उसे स्वीकार करनेको मैं तैयार हूँ। लेकिन, मैंने इस प्रसंगकी ओर आपका ध्यान विशेष रूपसे यह समझानेके लिए आकृष्ट किया है कि सत्याग्रहसे मेरा मतलब क्या है और साथ ही इसके जरिये मैं आपको यह भी दिखाना चाहता हूँ कि जो लोग इस सुन्दर अस्त्रको अच्छी तरह नहीं समझते, उनके द्वारा इसका प्रयोग करना कितना खतरनाक है। यह उदाहरण मैं सिर्फ इसलिए दे रहा हूँ कि भावी सुधारक सावधान हो जायें और जबतक उन्हें अपनी स्थितिका पूरा भान नहीं हो और उनमें असाधारण आत्म-संयम न हो तबतक वे इस तरीकेको न अपनायें । यह दृष्टान्त देनेका एक कारण यह भी है कि चूँकि मैं सत्याग्रहके इस तरीकेपर, जिसे मैं बेजोड़ मानता हूँ, मुग्ध हूँ, इसलिए मैं नहीं चाहता कि जहाँतक मुझसे बन पड़े, किसीको इसका दुरुपयोग करने दूं। इसलिए मैंने इन भाईसे कहा कि जबतक आप यह नहीं समझ जाते कि सत्याग्रह सचमुच क्या चीज है और जबतक आप उसकी सच्ची भावनाको ग्रहण नहीं कर लेते तबतक इस समस्यासे अलग ही रहें।

  1. १. इस मुलाकातकी हिन्दूमें छपी रिपोर्टके लिए देखिए परिशिष्ट ३ ।